बजट : रुझानों पर असर डालेगा
बजट हो या कोई भी सरकारी नीति उसका संबंध चुनाव से नहीं हो, ऐसा संभव नहीं. इसमें कोई निराली बात नहीं है.
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सरकारें चुनाव जीतने के लिए ही काम करती हैं. खुद को देश का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की कोशिश की जाती है. पांच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बजट लाने का कांग्रेस ने विरोध ही इसलिए किया था कि सरकार कहीं खुद को ज्यादा बड़ा देश-हितैषी साबित न कर दे. इसलिए सरकार की कोशिशों पर नजर डालनी चाहिए और इस पर भी कि विपक्ष इन कोशिशों पर पानी कैसे डालेगा. चुनाव के पहले सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की नजर में नोटबंदी चुनाव में बड़ा मुद्दा बन चुकी थी. बजट भी नोटबंदी के नकारात्मक असर को कम करने की कोशिश करता नजर आता है.
बीजेपी को व्यापारियों की पार्टी और उद्योगपतियों तथा उच्च मध्यवर्ग की हमदर्द माना जाता है और नोटबंदी की पहली मार व्यापारियों पर ही पड़ी है. बजट पर नजर डालें तो केंद्र सरकार अपनी छवि को बदलने की कोशिश करती नजर आती है. आयकर में सबसे निचले तबके को छूट देकर और अमीर तबके पर सरचार्ज बढ़ाकर उसने राजनीतिक संदेश भी दिया है. वह यह जता रही है कि हम अमीरों से वसूलकर गरीबों को दे रहे हैं. नोटबंदी की तमाम तकलीफों के बावजूद यदि उसके खिलाफ कोई बड़ा बवाल नहीं हुआ तो उसकी वजह यही थी कि गरीबों को लगा कि अमीरों के नोट बाहर निकल रहे हैं. मोदी अमीरों की बांहें मरोड़ रहा है.
नोटबंदी का पहला निशाना व्यापारी ही थे, जो भारतीय समाज में परंपरा से किसानों का दोहन करने वाले दिखाए जाते हैं. बजट में सरकार ने खुद को देहाती गरीबों, दलितों, जनजातियों और समाज के पिछड़े तबकों की हितैषी के रूप में रेखांकित किया है. वित्तमंत्री ने कहा है कि विमुद्रीकरण के लाभ गरीबों और वंचितों को दिए जाएंगे. हम 2019 यानी महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक एक करोड़ परिवारों को गरीबी से निजात दिलाने और 50 हजार ग्राम पंचायतों को गरीबी-मुक्त बनाने के लिए अंत्योदय मिशन पर काम करेंगे. यह चुनावी भाषण ही है, क्योंकि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए किसी कार्यक्रम की घोषणा नहीं है. अच्छा होता कि सरकार लक्ष्य रखती कि फलां गांवों को गरीबी से मुक्त किया जाएगा. बजट के कागजों में ग्रामीण, वंचित और दलित शब्दों पर जोर है.
ग्रामीण और संबद्ध क्षेत्रों के लिए किए गए प्रावधानों को एक साथ जोड़कर बताया गया है कि इसके 1,87,223 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. अनुसूचित जातियों के लिए बजट में बड़ा इजाफा किया है. 2016-17 में यह राशि 38,833 करोड़ रु पये थी, जिसे 2017-18 में बढ़ाकर 52,393 करोड़ रु पये कर दिया गया है. यह 35 फीसद वृद्धि सीधे-सीधे सरकार के नजरिए को रेखांकित करती है. ऐसी ही एक संख्या मनरेगा के संदर्भ में 48,000 करोड़ रु पये के प्रावधान की है, जो इस मद में अब तक रखी गई सबसे बड़ी रकम है. प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जिसके लिए 19,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. इसमें राज्यों की धनराशि को भी जोड़ दें तो पूरी धनराशि 27,000 करोड़ रु पये होती है.
खेती-किसानी के लिए नाबार्ड के माध्यम से 10 लाख करोड़ रु पये के कृषि ऋण का लक्ष्य रखा गया है, जो सीधे इस बजट का हिस्सा नहीं है, पर जिसे सिर्फ इस बात को रेखांकित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है कि सरकार खेती को तवज्जो दे रही है. फसल बीमा, सिंचाई वगैरह के प्रावधानों का जिक्र इस सिलसिले में महत्त्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2019 तक एक करोड़ घर बनाने की बात सीधे उत्तर प्रदेश को लक्ष्य करके कही गई है. देश में उत्तर प्रदेश ही ऐसा राज्य है, जहां आबादी के सबसे बड़े हिस्से कुल 20 फीसद लोगों के पास घर नहीं है. अन्य राज्यों में यह 8-10 प्रतिशत ही है. यह कार्यक्रम सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश को प्रभावित करेगा. उत्तर प्रदेश की शहरी आबादी के लिहाज से भी यही स्थिति है.
सरकार ने 3.96 लाख करोड़ रु पये के आसपास के जिस भारी इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश की घोषणा की है, वह जबर्दस्त है, बशर्ते वोटर उस पर ध्यान दे. देश में इतने बड़े स्तर पर निर्माण पर निवेश पहले कभी नहीं हुआ. सड़कों, पुलों, भवनों, बिजली की लाइनों और रेल लाइनों के निर्माण से विकास की गाड़ी तेज होगी. ये निर्माण गांवों और शहरों से होकर गुजरेंगे. इनके सहारे छोटे रोजगारों को बढ़ने का मौका मिलेगा. बड़ी तादाद में मजदूरों का काम मिलेगा.
प्रधानमंत्री कौशल केन्द्रों को मौजूदा 60 जिलों से बढ़ाकर देशभर के 600 जिलों में फैलाने की घोषणा भी महत्त्वाकांक्षी है. देश भर में 100 भारतीय अंतरराष्ट्रीय कौशल केन्द्र स्थापित होंगे. इनमें उन्नत प्रशिक्षण तथा विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे. इससे विदेशों में रोजगार की संभावना तलाश रहे युवाओं को लाभ होगा. रोजगार का मतलब सरकारी नौकरियां ही नहीं हैं, अपने रोजगार खड़े करना भी है.
भारत में आर्थिक सुधारों में सबसे बड़ा अवरोध श्रम-सुधारों को लेकर है. यहां श्रम-सुधारों की बात करना राजनीतिक लिहाज से आत्मघाती होता है. इसीलिए वित्तमंत्री ने इसे मीठी गोली के रूप में पेश किया है. भाजपा के अनुषंगी संगठन भारतीय मजदूर संघ ने ही सबसे पहले श्रम सुधारों को लेकर विरोध व्यक्त किया है. बीएमएस ने बजट पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि इसमें कामगारों, वेतनभोगियों और गरीबों की अनदेखी की गई है. बजट के राजनीतिक निहितार्थ को जितना भाजपा भुनाने की कोशिश करेगी, उतना ही विरोधी दल भी अपने पक्ष में भुनाएंगे. इसीलिए पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बजट को ऐसा पटाखा कहा जो सिर्फ शोर करता है.
नोटबंदी का असर हर घर और हर जेब पर पड़ा है. जेटली के बजट के काफी बड़े हिस्से में उसका डर बोल रहा है. विरोधी दल साबित करने की कोशिश करेंगे कि सरकार ने वह नहीं किया जो वह कर सकती थी. सरकार साबित कर रही है कि इस साल आपका भला होगा, तो नोटबंदी की वजह से. दोनों तरफ से इस बात को खबरों में बनाए रखने की कोशिश की जाएगी. इसे खबरों में बनाए रखने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने बजट के दिन संसद का बहिष्कार भी इसीलिए किया.
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