क्या वाकई है सुखद और सुरक्षित

Last Updated 24 Jan 2017 05:14:59 AM IST

आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले में जगदलपुर-भुवनेश्वर हीराखंड एक्सप्रेस के इंजन और 9 डिब्बों के 21 जनवरी की देर रात पटरी से उतर जाने के कारण 36 यात्रियों की मौत हो गई और 60 से अधिक घायल हो गए.


क्या वाकई है सुखद और सुरक्षित.

मृतकों की संख्या अभी और बढ़ सकती है, क्योंकि कई यात्रियों के ट्रेन के क्षतिग्रस्त डिब्बों में फंसे होने का संदेह है. कहा जा रहा है कि दुर्घटना कुनेरु  स्टेशन के पास रेल पटरी से छेड़छाड़ करने के कारण हुई है. कुछ दिनों पूर्व ही 20 नवम्बर, 2016 की भोर में तकरीबन 3 बजे कानपुर देहात जिले के पुखरायां इलाके के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे के पटरी से उतर जाने के कारण हादसे में 45 लोगों की मौत हो गई थी.

विगत सालों में रेलवे ने कई बार रेल टिकटों की कीमत बढ़ाई है. लेकिन सुविधाओं के नाम पर अभी भी इसका रुख नकारात्मक रहा है. सुरक्षा के मामले में तो इसकी स्थिति पूरी तरह से फिसड्डी है. देश में तकरीबन 19,000 रेलगाड़ियां रोजाना चलती हैं, और दुर्घटनाएं अमूमन आए दिन होती हैं; जिनके कारण मानवीय भूल, आतंकी कार्रवाई और आधारभूत संरचना का अभाव होते हैं. देश की ट्रेनों में हर दिन सवा करोड़ से ज्यादा लोग सफर करते हैं. आए दिन होने वाली ट्रेन दुर्घटनाएं कई सवाल पैदा करती हैं. दुर्घटनाओं की कारण बनने वाली गलतियों की पहचान और  उनके निदान के प्रयास नहीं किए जा रहे.

भारत का रेल नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्कों में शुमार है. इसका रख-रखाव रेलवे के लिए कई कारणों से चुनौतीपूर्ण है. सवाल कुशल मानव संसाधन की कमी, कुशल प्रबंधन का अभाव एवं आधारभूत संरचना को मजबूत करने से भी जुड़े हैं. मगर सबसे बड़ी समस्या वित्त-पोषण की है. मौजूदा समय में भारतीय रेल गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रही है. लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये की लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए उसके पास पूंजी नहीं है. जरूरत है रेलवे गैर-किराया संसाधनों से 10 से 20 प्रतिशत राजस्व हासिल करे. परंतु इस मद में फिलहाल 3 प्रतिशत से भी कम राजस्व अर्जित किया जा रहा है.

10 प्रतिशत गैर-किराया संसाधन हासिल करने का मतलब होता है कि रेलवे 15,000 करोड़ रुपये सालाना अतिरिक्त राजस्व प्राप्त कर रहा है और उसमें किसी तरह का कोई पूंजीगत खर्च शामिल नहीं है. फिलवक्त, भारतीय रेल के पास जमीन के रूप में करोड़ों-अरबों की संपत्ति बेकार पड़ी है, जिसके तार्किक इस्तेमाल से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है. इसके बरक्स विज्ञापन के जरिये आसानी से पैसा कमाया जा सकता है. रेलवे के पास लगभग 60,000 कोच, 2.5 लाख वैगन, 10,000 लोकोमोटिव और 7,000 से भी अधिक स्टेशन हैं. इनके इस्तेमाल से रेलवे प्रत्येक साल करोड़ों-अरबों रुपये कमा सकती है. आज के माहौल में रेलवे के विकास के लिए पीपीपी मॉडल अपनाने की जरूरत है, ताकि रेलवे का विकास सुनिश्चित किया जा सके. इस क्रम में राजस्व बढ़ाने के लिए बजट में रेलवे की क्षमता और उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है.



एक आकलन के मुताबिक रेलवे में आमूलचूल सुधार लाने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2.5 से 3.0 प्रतिशत तक इसका योगदान हो सकता है. रेलवे में सुधार इस बात पर भी निर्भर करेगा कि खर्च और बचत के बीच संतुलन बनाकर आगे की दशा और दिशा तय की जाए. साथ ही, खर्च पर लगातार निगरानी रखते हुए यह सुनिश्चित किया जाए कि खर्च उसी मद में किया गया है, जिसके लिए उसका आवंटन किया गया था.  भारत को विदेशों की तरह 200 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा रफ्तार वाली बुलेट या हाई स्पीड ट्रेन की जरूरत नहीं है. ट्रेन पटरी से न उतरे, इसके लिए नई तकनीक और दूसरे उपायों का सहारा लेने की जरूरत है.

आपस में न टकराएं, इसके लिए अधतन तकनीक की जरूरत है. बिना गार्ड वाले फाटकों पर चेतावनी पण्राली विकसित करनी होगी. खस्ताहाल पटरियों, पुरानी पड़ चुकी सिग्नल पण्राली और दोयम दर्जे के दूसरे उपकरणों को बदलना होगा. इसके  लिए भारी-भरकम पूंजी, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, कुशल प्रबंधन, मानव संसाधन को सक्षम बनाने जैसे कवायद की जरूरत है. निजी पूंजी लाने के लिए पीपीपी मॉडल और विदेश से पूंजी लाने की कोशिश की जा सकती है. संसाधन के युक्तिपूर्ण उपयोग, भ्रष्टाचार पर काबू आदि से स्थिति को बेहतर किया जा सकता है. ऐसा करने से रेलवे की आय में इजाफा हो सकता है, जिसका उपयोग यात्रियों की यात्रा को सुखद एवं सुरक्षित बनाने में किया जा सकता है.

सतीश सिंह


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