क्या होगा ट्रंप युग में

Last Updated 23 Jan 2017 05:18:08 AM IST

डोनाल्ड जॉन ट्रंप ने अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति की शपथ लेने के साथ 20 मिनट का जो भाषण दिया, उससे उनकी नीतियों का आभास हो जाता है.


क्या होगा ट्रंप युग में.

हालांकि, उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान ही अपनी नीतियों और अपने तेवर का आभास करा दिया था. उनको लेकर पूरी दुनिया में जिस तरह की आशंका पहले से थी, शपथ लेने के बाद दिए गए भाषण से उसमें ज्यादा कमी आई होगी ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है. अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप एक ऐसे शख्स के रूप में सामने आए थे, जिनकी अमेरिकी और दुनिया भर की मीडिया में आलोचना ज्यादा हुई. उनको नये-नये नाम दिए गए. इस कारण मीडिया के प्रति उनकी वितृष्णा साफ दिखाई दी है.

उनके कार्यकाल में आगे मीडिया के साथ कैसा संबंध रहेगा, कहना मुश्किल है? हालांकि, चुनाव पूर्व के उनके भाषणों में दिखते तेवर और तासीर से राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद के तेवर और तासीर में थोड़ा अंतर था. लेकिन मूल बातें वही थीं. अमेरिका एक सामान्य देश नहीं है कि उसकी नीतियां उसकी भौगोलिक सीमाओं तक सीमित रहे और विश्व उससे अप्रभावित रहे. अमेरिका वि श्वकी अभी एकमात्र महाशक्ति है, पूरी दुनिया में उसका प्रभावी विस्तार है, विश्व व्यवस्था पर उसका प्रभाव है, इसलिए उसकी नीतियां पूरी दुनिया को प्रभावित करेंगी और इस कारण सारी दुनिया में ट्रंप की भावी नीतियों को लेकर गहन विचार हो रहा है.

ट्रंप इसके पहले कभी राजनीति में नहीं रहे. वे एक व्यवसायी हैं, इसलिए राजनेताओं की तरह संयमित भाषा उनके स्वभाव में नहीं. इसके बावजूद, राष्ट्रपति बनने के पहले वे जिस तरह समूचे मुसलमान समुदाय पर उंगलियां उठाते थे, वैसा अब उन्होंने नहीं कहा है. उन्होंने कहा है कि वे सभ्य देशों को एकजुट कर रैडिकल इस्लामी आतंकवाद का खात्मा करेंगे. अभी तक अमेरिकी राष्ट्रपति केवल आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते थे. हालांकि उनके मन में भी इस्लामी शब्द रहता होगा, किंतु कभी बोलते नहीं थे. यह बात अलग है कि बाहर से जाने वाले मुसलमानों के लिए अमेरिका में सुरक्षा जांच काफी कड़ा होता है. ट्रंप ने उस अंदर छिपे भाव को बाहर किया है.

हां, सीधे इस्लामी आतंकवाद की जगह उन्होंने रैडिकल इस्लामी आतंकवाद शब्द प्रयोग किया है. यह उनके अपने ही विचार में परिवर्तन दिख रहा है. हालांकि, इससे उनका क्या तात्पर्य है यह आने वाले समय में पता चलेगा. वे कह रहे हैं कि धरती के चेहरे से ऐसे आतंकवाद को खत्म कर देंगे. जाहिर है, इस भाषण के आधार पर सीधा निष्कर्ष यही निकलता है कि आतंकवाद के खिलाफ उनका प्रहार संभवत: पहले से ज्यादा प्रचंड होगा. लेकिन इसमें हमारे लिए बहुत उत्साहित होने का अभी कारण नहीं है. रैडिकल इस्लामी आतंकवाद से ऐसा लगता है उनका तात्पर्य आईएस से ही है. इसके खात्मे के लिए वे प्रयास करेंगे. हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो मानते हैं कि आतंकवाद के खिलाफ होने का अर्थ ट्रंप की पाकिस्तान के प्रति कठोर नीति होगी. सच यह है कि पाकिस्तान के बारे में उन्होंने ऐसा कुछ कहा ही नहीं है.

अफगानिस्तान में संघर्ष के लिए अमेरिका को अभी तक पाकिस्तान के साथ संबंध आवश्यक लगता रहा है. ट्रंप के शासनकाल में यह बदल जाएगा या इसमें कोई मोड़ आएगा ऐसा निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगा. हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि पाकिस्तान के प्रति उनका व्यवहार नरम नहीं होगा. हमें ट्रंप की विदेश नीति और आतंकवाद विरोधी नीति पर विचार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि ट्रंप अमेरिकी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने, उसे फिर से संपन्न बनाने, लोगों के लिए नौकरियां वापस लाने, विदेशी वस्तुओं और उत्पादन की जगह अमेरिकी उत्पादन बढ़ाने की बात कर रहे हैं.

यह सब दूसरे देशों के साथ केवल व्यावसायिक संबंधों तक सीमित नहीं है. प्रकारातंर से इसमें सामरिक संबंध और आतंकवाद विरोधी युद्ध की नीतियां भी निहित हैं. उनके भाषण के कुछ अंश पर ध्यान दीजिए- \'आज से हम एक नया विजन लेकर आगे आएंगे. सबसे पहले हम अमेरिका की सोचेंगे. चाहे वह अप्रवासन का मामला हो, व्यापार हो, कुछ भी हो. हम अपने रोजगार वापस लाएंगे, अपनी दौलत, अपने सपनों को फिर से वापस लाएंगे. अमेरिकी लोगों, अमेरिकी मजदूरों से इस देश को बनाएंगे. इस देश में अमेरिकी लोग योगदान देंगे. हम दूसरों के साथ भी संपर्क बनाएंगे लेकिन पहले अपना हित देखेंगे.\'

इन पंक्तियों में ट्रंप की नीतियों का सार है. उन्होंने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया. साथ ही कहा कि \'बॉय अमेरिकन हायर अमेरिकन्स\' यानी अमेरिकी चीजें ही खरीदो, अमेरिकी लोगों को ही नौकरियां दो. तो इसका अर्थ क्या है? कुछ लोग भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की \'इंडिया फर्स्ट से ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की तुलना करते हैं. दोनों में मौलिक अंतर है. मोदी ने जो कहा उसमें अपने आपको भारत के अंदर सिमटना नहीं था, ट्रंप की आवाज में अमेरिका को सीमित करना है.

ट्रंप ने कहा भी कि हम देशों से संबंध रखेंगे. लेकिन अमेरिका का हित उसमें पहला होगा. कोई देश विदेश नीति में अपने देश के हित की रक्षा को सर्वोपरि रखता है. मगर ट्रंप का आशय अगर अंतवर्त्ती होने से है यानी अपने को संकुचित करके केवल अपने देश की चिंता तक सिमट जाने से है तो फिर इसका आशय और इसकी परिणति काफी गंभीर होगी. तो जिस राष्ट्रपति के ऐसे विचार हैं, उनसे हम वैश्विक स्तर पर क्या उम्मीद कर सकते हैं. वह अमेरिका को सुरक्षित करना चाहते हैं, सीमाओं पर ऐसी चौकीदारी चाहते हैं ताकि अप्रवासी अंदर नहीं आ सके.

सब कुछ केवल अमेरिकी लोगों को नौकरियों मिलने के लिए, अमेरिकियों को सुरक्षित रखने के लिए... अभी तक के अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने अपने राष्ट्रहित की पूर्ति नहीं की, ऐसा नहीं कहा जा सकता. परंतु उनकी नीति यह रही है कि जिस विश्व व्यवस्था ने उनके हितों की रक्षा की उसे बनाए रखा जाए. ट्रंप की नीति में विश्व व्यवस्था को अस्वीकार करने का भाव दिखता है. फिर भी ट्रंप के बारे में अभी निश्चयात्मक तौर पर कुछ नहीं कह सकते. हमें कुछ समय तक उनकी नीतियों, उनके निर्णयों की परख करनी होगी.

 

 

अवधेश कुमार


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