सेल्फी मौत का खतरनाक खेल
सोशल मीडिया में स्मार्टफोन का बेजा दखल और सेल्फी का क्रेज सूचना तकनीक के संसार की उभरती हुई नई घटना है.
सेल्फी मौत का खतरनाक खेल |
सेल्फी से जुड़ी कुछ हाल की घटनाएं बताती हैं कि युवाओं के साथ में नाबालिग बच्चों के बीच सेल्फी का यह शौक काफी जानलेवा साबित हो रहा है. साथ ही अपने चारों ओर का ध्यान दिए बिना सेल्फी के प्रति लोगों का यह अतिरेकी व्यवहार संवेदनशून्यता को भी बढ़ा रहा है. हाल ही में हाईस्कूल के दो नाबालिग छात्र यश और शुभम दिल्ली के अक्षरधाम के समीप चलती ट्रेन के सामने सेल्फी लेने के चक्कर में जान गंवा बैठे. दोनों छात्र अपने पांच-छह दोस्तों के साथ चलती ट्रेन के सामने रेलवे ट्रैक पर सेल्फी का वीडियो शूट करना चाहते थे. लेकिन स्टंटबाजी के वक्त ट्रैक पर ट्रेन आ गई और दोनों इस ट्रेन की चपेट में आ गए. ऐसा ही हाल का एक मामला ओडिसा का है, जहां एक इंजीनियरिंग के छात्र की मौत बिजली के तारों के साथ सेल्फी लेने के चक्कर में हो गई. तीसरी घटना भी ऐसे ही अतिरेकी युवक की है, जो सबसे ऊंची चट्टान से सेल्फी के ही चक्कर में चट्टान से खिसककर समुद्र में जा गिरा और उसकी मौत हो गई.
कुछ समय पहले भी इससे जुड़ी एक घटना बहुत सुर्खियों में रही थी, जब अमेरिका में एक छात्र को कंधे में गोली लगी थी और उसने चिकित्सा सहायता मांगने की जगह अपने खून से लथपथ कंधे की सेल्फी उतारने की गुहार लगाई. अभी हाल ही में अमेरिका के ही हृयूस्टन में एक 19 वर्षीय किशोर अपनी भरी बंदूक के साथ सेल्फी ले रहा था. इसी बीच उस बंदूक का ट्रिगर दब गया और उसकी मौत गई. इतना ही नहीं, अभी पिछले दिनों ही अमिताभ बच्चन को अपने एक दोस्त के अंतिम संस्कार में मौजूद कुछ लोगों का वहां सेल्फी बनाना पंसद नहीं आया. दूसरी घटना भी बड़ी तकलीफदेह है, जिसमें सऊदी अरब के एक युवक ने अपने दादा की मौत के बाद उनके साथ सेल्फी उतारी. खास बात यह है कि उसने उसे अपनी मुस्कान के साथ \'गुड बॉय फादर\' शीषर्क देकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया.
दरअसल, यह तकलीफ केवल इस महानायक की ही नहीं है, पूरे समाज के लिए यह चिंता का विषय है. डिजिटल इंड़िया के फैलाव के बाद अब यह चिंता भी देश को सताने लगी है कि आभासी दुनिया का यह खतरनाक फैलाव कहीं हमारी फेस टू फेस दुनिया के अहसास को समाप्त करके युवाओं में नये आभासी स्टंट की प्रवृत्ति में और इजाफा न कर दे. सेल्फी का जिस तरह से चलन बढ़ा है, उसने जीवन और मौत के फर्क को खत्म कर दिया है. चाहे रेल दुर्घटना में लोगों का हाहाकार हो अथवा अग्निकांड और बाढ़ का ताडंव या गोली के शिकार लोग अथवा वह चाहे नेताओं की रैली या सभा ही क्यों न हो; वहां जगह का ध्यान दिए बिना लोगों में सेल्फी लेने का उतावलापन जोर पकड़ रहा है. आंकड़े बताते हैं कि सेल्फी लेने के मामले में दुनिया में तकरीबन 150 मौतें हुई. इनमें से 76 भारत में, 9 पाकिस्तान में और 8 अमेरिका में हुई.
पिछले तीन साल के भारत से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि 2014 में सेल्फी से मरने वालों वालों की जो संख्या 15 थी, वह 2016 में बढ़कर 73 तक पहुंच गई. जहां तक सेल्फी के अपलोड करने का सवाल है तो आंकड़े बताते हैं कि विगत एक साल में 2400 सेल्फी के नमूने यू-टयूब पर अपलोड किए गए. इनको अपलोड करने वालों की उम्र 18 से 33 साल के बीच रही. खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश सेल्फी ट्रेन की चपेट में आने से अधिक हुई थीं. इन तथ्यों की एक और खास बात यह रही कि इसमें पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में सेल्फी लेने का क्रेज अधिक पाया गया. इससे जुड़ा मनोविज्ञान बताता है कि सेल्फी जितनी डेयरिंग होगी, उसे उतने ही लाइक मिलने की उम्मीदें बढ़ जाती हैं.
डेयरिंग सेल्फी का यह उतावलापन युवाओं को आत्मघाती बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है. आभासी दुनिया वहीं तक ठीक है, जहां तक यह सामाजिक सरोकारों से जुड़ी रहे और भावनात्मक संतुलन बनाए रखते हुए संवेदनशीलता का संरक्षण करे. वचरुअल दुनिया की गिरफ्त से बाहर आने के लिए जरूरी है कि हम आभासी दुनिया की लाइक व डिसलाइक से बचते हुए अपनों खासकर बच्चों के साथ में युवा पीढ़ी के बीच अपना संसार बनाएं. अपने फेस-टू-फेस संबधों के सुख-दुख को साझा करके साइबर दुनिया की सेल्फी से जुड़े इस पहचान के संकट से बचा जा सकता है.
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