बीसीसीआई : अब बदलेगी सूरत
सुप्रीम कोर्ट के फै सले के बाद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की पूरी तरह से सूरत बदलना तय हो गया है.
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पिछले काफी समय से बीसीसीआई लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने में टालमटोल कर रहा था. पर अब कोर्ट द्वारा अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को बर्खास्त करने से साफ हो गया है कि अब बोर्ड और राज्य एसोसिएशनों को हर हाल में लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करना होगा. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि 19 जनवरी को होने वाली सुनवाई में बीसीसीआई के कामकाज के संचालन के लिए प्रशासक की नियुक्ति तक उसके सबसे वरिष्ठ उपाध्यक्ष और संयुक्त सचिव कामकाज देखेंगे. पर हालत यह है कि मौजूदा पदाधिकारियों में लोढ़ा समिति की सिफारिशों के मुताबिक इस पैमाने पर खरा उतरने वाला कोई है ही नहीं.
बीसीसीआई में इस समय सबसे सीनियर उपाध्यक्ष सीके खन्ना हैं. लेकिन वह डीडीसीए में पिछले दो दशक से ज्यादा समय से पदाधिकारी हैं, इसलिए वह सिफारिशों के अनुसार ‘कूलिंग पीरियड’ के अंतर्गत आते हैं. वहीं संयुक्त सचिव अमिताभ चौधरी भी लंबे समय से झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन के पदाधिकारी होने की वजह से कूलिंग पीरियड में आते हैं. अन्य उपाध्यक्षों में टीसी मैथ्यू, गंगा राजू और गौतम राय भी अपनी राज्य एसोसिएशनों में नौ साल से ज्यादा समय से जमे हुए हैं, इसलिए उन्हें भी अगला चुनाव लड़ने के लिए एक कार्यकाल आराम करने की जरूरत है. वहीं एक अन्य उपाध्यक्ष एमएल नेहरू 70 साल से ज्यादा के होने के कारण यह जिम्मेदारी नहीं संभाल सकते हैं. अगर ढाई हफ्ते के लिए कार्यवाहक अध्यक्ष को भी लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर कसा गया तो कोई भी पदाधिकारी खरा नहीं उतरता है. इस स्थिति में बीसीसीआई के सीईओ राहुल जोहरी को यह जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.
अनुराग लोढ़ा समिति की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू नहीं कर पाने के पीछे यह दलील देते रहे हैं कि राज्य एसोसिएशनें इन सिफारिशों को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन नहीं कर रहीं हैं, इसलिए बीसीसीआई के हाथ बंधे हुए हैं. पर यह भी कहा जा रहा है कि राज्य एसोसिएशनें बीसीसीआई से मिलने वाले कोष से चलती हैं, इसलिए बोर्ड दबाव डालकर राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों को सिफारिशों को लागू करने नहीं दे रहा है. किसी भी एसोसिएशन को चलाने के लिए आमतौर पर अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष के रूप में तीन पदाधिकारियों की अहम भूमिका होती है. बीसीसीआई से संबद्ध 31 एसोसिएशन हैं. इसका मतलब हुआ कि करीब 93 व्यक्ति देश की विभिन्न क्रिकेट एसोसिएशनों को चला रहे हैं. लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू करने पर फारूख अब्दुल्ला, एमएल नेहरू, अनुराग ठाकुर, आईएस बिंद्रा, अरुण जेटली, चेतन चौहान, सीके खन्ना, गौतम राय, रवि सावंत, अजय शिर्के, निरंजन शाह, एन श्रीनिवासन और बृजेश पटेल सहित लगभग 60-65 पदाधिकारियों को पद छोड़ना पड़ेगा.
इससे आप समझ सकते हैं कि राज्य क्रिकेट एसोसिएशनें क्यों लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने की पक्षधर नहीं थीं. ऐसा लगता है कि बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों दोनों को शायद लगता था कि सिफारिशें लागू करने पर भी जाना ही होगा तो क्यों न अदालत को ही फैसला करने दिया जाए. अब अहम सवाल यह है कि बीसीसीआई के संचालन के लिए प्रशासकों के रूप में किनकी नियुक्ति होती है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एमिकस क्यूरी की भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ वकील फली एस नारीमन और गोपाल सुब्रमण्यम को प्रशासक तलाशने की जिम्मेदरी सौंपी है. इस फैसले के आने से पहले की सुनवाई में पूर्व गृहसचिव जीके पिल्लई, पूर्व सीएजी प्रमुख गोपाल राय और पूर्व टेस्ट क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ के नाम सुझा चुका है.
पर कोर्ट उस समय इन नामों पर राजी नहीं हुआ था. बेहतर हो कि सुनील गावस्कर, जवागल श्रीनाथ, सौरव गांगुली जैसे क्रिकेटरों के नाम आगे आएं तो खेल के लिहाज से बेहतर होगा. वैसे भी यह सभी क्रिकेट प्रशासन से जुड़े रहे हैं. इसके अलावा प्रशासकों को जल्द-से-जल्द लोढ़ा समिति की सिफारिशें को लागू करवाकर चुनाव करा देने चाहिए, जिससे हालात सामान्य हो सकें. सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछले साल 18 जुलाई को लोढ़ा समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लेने के बाद बीसीसीआई को चार-छह माह में सिफारिशें लागू करने के लिए कहा. लेकिन बीसीसीआई ने कुछ खास सिफारिशों को मानने से इनकार ही नहीं किया बल्कि कई बार इनकी अनदेखी भी की. जैसे कि सिफारिशों में कहा गया था कि तीन सदस्यीय चयन समिति बनाई जाए पर बीसीसीआई ने एजीएम में पांच सदस्यीय समिति का ही गठन किया.
सिफारिश में भविष्य के कार्यकाल के लिए किसी की नियुक्ति नहीं करने को कहा गया था पर अजय शिर्के का सचिव के तौर पर चुनाव कर लिया गया. लोढ़ा समिति ने पहले चरण की सिफारिशों को 30 सितम्बर 2015 की तारीख तय की. मगर बीसीसीआई ने 30 सितम्बर को सिफारिशों पर विचार करने के लिए विशेष साधारण सभा बैठक बुलाई. साथ ही पिछले साल 30 सितम्बर तक प्लेयर्स एसोसिएशन का गठन करने को कहा था, जिस पर आज तक कुछ नहीं कहा गया है. पिछले कुछ समय से यह कहा जा रहा है कि सुधार सिर्फ बीसीसीआई में क्यों? हम यदि अन्य खेल संगठनों पर नजर डालें तो दिखेगा कि कई में तो कुछ लोगों का दो दशक से कब्जा बना हुआ है.
यही नहीं कुछ एसोसिएशनों में पदाधिकारी अध्यक्ष या सचिव जिस पद पर रहते हैं, उसी की चलती है. खेल मंत्रालय ने इन सिफारिशों को अन्य खेल संगठनों में भी लागू करने का संकेत दिया है. पर एक और समस्या खड़ी हो सकती है कि विभिन्न राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों में लंबे से काबिज लोगों ने यदि इन सिफारिशों के कारण हटने पर अपने भरोसेमंद या परिवार के किसी सदस्य को बैठाकर पर्दे के पीछे से खेल का संचालन करना जारी रखा तो इससे क्रिकेट का ज्यादा नुकसान होगा. इसलिए अदालत को इस मसले पर ज्यादा सजग रहना होगा. यह सच लगता है कि लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू होने से पारदर्शिता आना स्वाभाविक है. पर परिणाम बेहतर नहीं निकलने पर सिफारिशों को कोसा भी जा सकता है.
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