त्वरित टिप्पणी : अब घोषणाओं को लागू करने की चुनौती

Last Updated 02 Feb 2021 04:21:47 AM IST

आत्मनिर्भर भारत अभियान के केंद्र में केंद्रीय बजट एक बदली हुई परिस्थिति में आया है, जब अर्थव्यवस्था कोरोना से पहले के आकार से कम हो गयी है।


डॉ. सुधांशु कुमार अर्थशास्त्री

इसकी झलक बजट की प्राथमिकता और राजकोषीय स्थिति के आकलन में साफ दिखाई देती है। बजट से यह स्पष्ट है कि सरकार अर्थव्यवस्था को कम से कम पुरानी पटरी पर लाने को प्रतिबद्ध होने के साथ ही लोकहितों को भी साध कर चलने की कोशिश कर रही है। राजस्व बढ़ाने की चुनौती आने वाले समय में केंद्र के साथ राज्य सरकारों पर बनी रहेगी, जिसका असर बजट की घोषणाओं को लागू करने पर होगा। हालांकि राजकोषीय दबाव के बीच पूंजीगत व्यय जिसका आर्थिक विकास में दीर्घकालिक परिणाम सकारात्मक होता है-में 34.5 प्रतिशत के वृद्धि की घोषणा एक महत्वपूर्ण कदम है।

वित्त मंत्री ने पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए राज्यों को भी प्रोत्साहित करने की घोषणा की है। हालांकि राज्यों की राजकोषीय स्थिति पर दबाव और संसाधनों को इकट्ठा करने के विकल्प केंद्र की तुलना में सीमित होने के कारण वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्यों ने पूंजीगत व्यय में काफी कमी की है। ऐसे में केंद्रीय बजट की इस घोषणा को किस हद तक लागू किया जा सकेगा, उस पर शंका बनी रहेगी। देखना होगा की कम आय वाले राज्य इस पर क्या कदम उठाते हैं?

राज्यों के राजकोषीय घाटे को प्रभावित करने वाली एक अन्य बजटीय घोषणा में 17 राज्यों को राजस्व घाटे के लिए क्षतिपूर्ति देना अच्छे राजकोषीय प्रबंधन वाले राज्यों को हतोत्साहित करने वाला है। बजट के साथ ही 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर भी केंद्र की सहमति प्रस्तुत की गई है, जिसके हिसाब से केंद्रीय कर से राजस्व के विभाज्य हिस्से में राज्यों का हिस्सा पहले की तरह 41 प्रतिशत रखा गया है। अब जबकि केंद्र के विभाज्य राजस्व में कमी आई है तो इसका सीधा असर राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर होगा। इस कमी की भरपाई राज्यों के लिए भारी चुनौती रहेगी क्योंकि उनके राजस्व और कर्ज लेने के विकल्प केंद्र की तुलना में सीमित हैं।  

अपेक्षा के अनुरूप स्वास्थ्य बजट में 137 प्रतिशत की बढ़ोतरी देश के वर्तमान स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।  ‘एक देश-एक राशन कार्ड’ से प्रवासी मजदूरों को सरकारी लाभों को प्राप्त करने में सहूलियत होगी। कृषि में सरकार का जोर वर्तमान विरोध से प्रभावित होने के कारण खरीद पर होने वाले सरकारी खचरे पर अधिक केंद्रित दिखा है, जबकि जरूरत कृषि क्षेत्र में भी पूंजीगत व्यय बढ़ाने की है। एक अन्य कदम जिस पर ध्यान देने की जरूरत है; वह है चुनाव वाले राज्यों को लेकर बजट में हर साल की जाने वाली अतिरिक्त घोषणा करने की परम्परा, जो कि देश के समग्र विकास की दीर्घकालिक जरूरतों से अलग हो सकती है और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संबंधों के लिए कहीं से भी उत्साहवर्धक नहीं है। इस वर्ष इस कड़ी में लाभ लेने वाले राज्य पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल रहे हैं। बहरहाल, भारत के इस बजट पर विश्व और राज्य सरकार की नजरें भी टिकी थीं।

विभिन्न आकलनों के हिसाब से यह उम्मीद की जा रही है की आगामी वित्तीय वर्ष में विकास की दर भारत में विश्व की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से अधिक होगी, जिससे राजस्व में वृद्धि और विनिवेश आसान हो सकता है। इस बजट की कई घोषणाओं को लागू करने में  राज्यों की भूमिका भी अहम  होगी। बजट के अनुमान के हिसाब से राजकोषीय घाटे का बढ़ना लाजमी है, लेकिन इससे जुड़ी विनिवेश की घोषणाओं को लागू करने में राजनीतिक सहमति और परिपक्वता की जरूरत है, जो वर्तमान सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। फिलहाल दीर्घकालिक विकास में बढ़ती जनसंख्या की आकांक्षाओं को पूरा करने और अर्थव्यवस्था में उत्पादकता बढ़ने के लिए केंद्र सरकार को बजट से आगे भी बहुत कुछ करने की जरूरत है, जिसमें राज्यों की सक्रिय सहभागिता आवश्यक है।



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