असुरक्षित आधी आबादी
कोलकाता के विधि महाविद्यालय प्रथम वर्ष की छात्रा के साथ कथित रूप से वरिष्ठ छात्रों द्वारा दुष्कर्म का मामला तूल पकड़ता जा रहा है।
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दक्षिण कोलकाता के इस परिसर में वह परीक्षा संबंधी प्रवेशपत्र भरने गई थी। मेडिकल जांच में सामूहिक रेप की पुष्टि होने के साथ ही एक सुरक्षाकर्मी गिरफ्तार किया गया। पीड़िता की शिकायत के अनुसार उसे जबरन यूनियन रूम में रोका गया और पूर्व छात्र व आपराधिक मामलों के वकील ने रेप किया।
दो अन्य छात्रों ने घटना का वीडियो भी बनाया। शिकायतकर्ता ने बताया, दोषी के विवाह प्रस्ताव को वह पूर्व में ठुकरा चुकी थी। अभियुक्तों का संबंध तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद से बताया जा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि शैक्षणिक संस्थाओं में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का दबदबा है। मुख्य आरोपी मनोजित के खिलाफ पहले भी कई विवाद सामने आने के बावजूद उसे कॉलेज में अस्थाई नौकरी मिलने के पीछे राजनीतिक संरक्षण बताया जा रहा है।
भाजपा घटना पर मुख्यमंत्री से इस्तीफा देने की मांग कर रही है जबकि उसे बीएचयू की वह घटना याद रखनी चाहिए जिसमें तमाम दबाव के बाद आरोपियों को पकड़ा गया था। तब सत्ताधारी दल ने किस राजनेता पर कार्रवाई की थी। यह खौफनाक है। विभिन्न घटनाओं के आधार पर कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि देश के शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय छात्राओं के लिए अति असुरक्षित हैं।
तमाम नियमों व कानूनी पाबंदियों के बावजूद सामने आने वाली ये घटनाएं चुनिंदा हैं क्योंकि छात्राएं घबरा जाती हैं क्योंकि उनके शिक्षा ग्रहण करने में अड़ंगे लगने लगते हैं। सवाल छात्राओं का ही नहीं है, महिलाओं/बच्चियों की सुरक्षा को लेकर सरकारी व प्रशासनिक ढुलमुल रवैया बदल क्यों नहीं रहा।
महिलाओं के प्रति अपराध थामने के लिए किए जाने वाले प्रचार, आयोग व दीवारों पर लिखे स्लोगन काफी नहीं कहे जा सकते। राजनीति को शिक्षा से दूर रखने की बात दशकों से होती रही है। उस पर राजनेताओं के अनर्गल बयानों से पीड़िता व उसके परिवार-परिचितों को होने वाले मानसिक कष्ट की भरपाई कैसे हो सकती है।
कोलकाता के मेडीकल कॉलेज में जूनियर डॉक्टर के जघन्य रेप/हत्या के जख्म अभी ज्यों-के-त्यों हैं। ममता बनर्जी को राजनीति को हाशिए में ढकेलते हुए भावपूर्ण स्त्री के तौर पर कड़े कदम उठाने से चूकना नहीं चाहिए।
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