महाराष्ट्र में हिन्दी पर सियासी संग्राम
महाराष्ट्र के विद्यालयों में पहली कक्षा से हिन्दी भाषा को शामिल करने के खिलाफ बढ़ते विरोध के दरम्यान मंत्रिमंडल ने त्रि-भाषा नीति पर सरकारी आदेश को रद्द कर दिया।
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भाषा नीति के कार्यान्वयन व आगे की राह सुझाने के लिए शिक्षाविद् की अध्यक्षता में समिति का गठन करने की घोषणा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने की। राज्य सरकार ने अप्रैल मध्य में आदेश जारी किया था कि अंग्रेजी व मराठी माध्यम स्कूलों के छात्रों के लिए पहली से पांचवीं कक्षा तक हिन्दी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाया गया था, परंतु जबरदस्त विरोध के चलते महीने भर बाद ही संशोधित सरकारी आदेश द्वारा हिन्दी को वैकल्पिक विषय बता दिया गया।
आदेश को रद्द करते हुए मुख्यमंत्री ने दलीलें दीं, कि मुख्यमंत्री रहते हुए उद्धव ठाकरे द्वारा कक्षा एक से बारह तक तीन भाषा नीति लागू करने की सिफारिशें स्वीकारी थीं व कार्यान्वयन पर सामिति गठित की थीं। भाषा विवाद देश में नया नहीं है। दक्षिण के कई राज्य हिन्दी का सिर्फ विरोध ही नहीं करते रहे हैं बल्कि इसे थोपे जाने के आरोप भी मढ़ते रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में त्रि-भाषा लागू करने की बात की गई है। जिसमें कम-से-कम दो भाषाएं भारत की मूल होनी अनिवार्य है।
तीसरी भाषा का चयन छात्र/राज्य व क्षेत्र के अनुरूप करने की बात की गई। मगर स्थानीय राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बनाया और वे पूर्वाग्रह से हिन्दी थोपने का विरोध करने में जुट गए। बेशक राज्यों में सरकारी नौकरियों के लिए उम्मीदवारों से स्थानीय भाषा के ज्ञान की अनिवार्यता अभी भी है। महाराष्ट्र में बहुसंख्य लोग मराठी बोलते हैं। यह देश में प्रयोग की जाते वाली भाषाओं में तीसरा स्थान रखती है, जिसे पश्चिम भारत के अन्य राज्यों में भी खूब प्रयोग किया जाता है।
बावजूद इसके भाषा विवाद में जबरन हिन्दी को घसीटना सिर्फ राजनीतिक कीचड़ उछालने का दस्तूर बन गया है, जिस पर सरकार को कड़ा निर्णय लेना चाहिए। किसी भी राष्ट्रीय नीति को लेकर राज्यों को सहिष्णुता बरतनी चाहिए। केंद्र को इस पर दखलंदाजी करने पर संकोच नहीं करना चाहिए। जब तीसरी भाषा का चुनाव छात्रों के इख्तियार में है, वे स्वेच्छापूर्वक न चाहें तो उन्हें मजबूर नहीं किया जा सकता। सरकार का इस तरह का ढुलमुल रवैया उचित नहीं।
अंग्रेजी पर बढ़ती निर्भरता और जरूरत को सहजतापूर्वक स्वीकारने वालों को एकता व अखंडता का सम्मान करते हुए जनता को यह इख्तियार देना होगा। भाषाओं की अपनी गरिमा व सम्मान है, उसके प्रति द्वेष कतई उचित नहीं है।
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