क्रूरता की दोषी महिलाएं

Last Updated 05 Sep 2023 01:18:18 PM IST

ससुराल पक्ष पर दहेज उत्पीड़न व दुष्कर्म का झूठा आरोप लगाना घोर क्रूरता है। इसे माफ नहीं किया जा सकता।


क्रूरता की दोषी महिलाएं

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह सख्त टिप्पणी की। अदालत ने कहा, किसी भी विवाह का आधार सहवास और दांपत्य संबंध होता है। जोड़े को साथ रहने से वंचित किया जाना साबित करता है कि विवाह चल नहीं सकता। यह अत्यधिक क्रूरता है। पीठ ने कहा, 2014 से दोनों पक्ष अलग-अलग रह रहे हैं। जो साबित करता है कि वे वैवाहिक संबंध बनाए रहने में असमर्थ हैं। यह अत्यधिक मानसिक क्रूरता का उदाहरण है। इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि वरपक्ष के सदस्यों के खिलाफ ना केवल दहेज उत्पीड़न के बल्कि बलात्कार के गंभीर आरोप लगाए गए, जो झूठ पाए गए। यह अत्यधिक क्रूरता है, जिसके लिए कोई माफी नहीं हो सकती। लंबे अरसे से ऐसे मामलों में इजाफा होता जा रहा है।

जहां विवाहिताएं दहेज उत्पीड़न के झूठे मामलों में ससुरालियों को अदालत तक खींचती हैं। वे बदले की भावना से मनगढंत आरोप लगाने से भी नहीं चूकतीं। कई मामलों में अदालत ने पाया कि आरोपों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था। दहेज उत्पीड़न की शिकायतों व बेकसूर ससुरालियों को फंसा कर उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने की नीयत वाले मामलों को लेकर अदालतों ने समय-समय पर चिंता व्यक्त की है। दहेज का लेन-देन अपने यहां जुर्म के दायरे में आता है। तीन/पांच साल की सजा व जुर्माने का भी प्रावधान है।

बावजूद इसके समाज के हर तबके में शादियों में धड़ल्ले से दहेज लिया-दिया जाता है। फिर दहेज उत्पीड़न की शिकायतें सही हैं या नहीं, इसे साबित करने में पुलिस की नीयत पर संदेह किया जाता है। इसलिए पुलिस की भूमिका पर भी अदालत को सख्ती करनी चाहिए। झूठे मुकदमे पर पति व उसके परिवार वालों को अपनी बेगुनाही साबित करने में मशक्कत करनी पड़ती है व आरोपों के खिलाफ सबूत भी देने पड़ते हैं।

महिलाओं के हक की हिफाजत करना निसंदेह अदालत की जिम्मेदारी है, मगर कानूनों का बेजा इस्तेमाल करने वालों पर सख्त कार्रवाई जरूरी है। दहेज हत्या व उत्पीड़न पर कड़ी सजा हों पर उनकी झूठी शिकायतें करने वालों को भी बख्शा ना जाए। मानसिक क्रूरता, सामाजिक बदनामी व जानबूझकर या बदले की भावना से प्रताड़ित करने की सजा भी तय की जाए।



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