गोरखपुर विश्वविद्यालय मारपीट घटना : संवाद से निकलेगा समाधान
गोरखपुर (Gorakhpur) स्थित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (Deendayal Upadhyaya Gorakhpur University) में कुलपति और कुलसचिव के साथ मारपीट की घटना सहन योग्य बिल्कुल नहीं है।
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जिस तरह से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के छात्रों ने विश्वविद्यालय परिसर में शुक्रवार को भारी उपद्रव किया और कानून-व्यवस्था की परवाह नहीं की, वह काफी तकलीफदेह वाकया है। शिक्षा के मंदिर में विद्यार्थियों के द्वारा ही ऐसी लंपटता का प्रदर्शन किसी भी दृष्टि से सराहने योग्य नहीं है।
हालांकि दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। छात्रों का आरोप है कि कुलपति और विश्वविद्यालय के अधिकारी छात्रों की किसी भी बात को अनसुना करते हैं, उनकी बातों को तवज्जो नहीं देते हैं। वहीं विश्वविद्यालय के अधिकारियों का तर्क है कि छात्रों को पढ़ाई-लिखाई से कोई वास्ता नहीं है और ये लोग परिसर का माहौल बिगाड़ने का काम करते हैं। बहरहाल, छात्रों को यह अधिकार कतई नहीं है कि वे हिंसा का सहारा लें। मारपीट और अधिकारियों पर जानलेवा हमला करने का हक किसी को नहीं है।
हर समस्या का समाधान संवाद के जरिये ही होता है। संवाद में बहुत ताकत होती है। मगर अफसोस, किसी भी पक्ष ने इसका इस्तेमाल नहीं किया। खासकर, विश्वविद्यालय के कुलपति और अन्य आला अधिकारियों की जिम्मेदारी थी कि वे विद्यार्थियों की दुारियों, उनकी व्यथा को संजीदगी से समझते, उन पर गौर फरमाते और उन्हें हल करने की युक्ति छात्रों के साथ साझा करते। उसी तरह छात्र नेताओं को भी अपनी बात विभिन्न मंचों पर रखने की जरूरत थी।
आपा खोने का खमियाजा कितना दुखदायी होता है, मारपीट करने वाले छात्रों को बाद में समझ आएगा। हाल के वर्षो में विश्वविद्यालय को ए प्लस प्लस और 3.78 फीसद ग्रेड के चलते देश के बड़े संस्थानों में शुमार होने की उपलब्धि हासिल हुई।
साफ है कि ऐसा विश्वविद्यालय में पढ़ाई के माहौल के साथ ही शिक्षणोत्तर गतिविधियों के कारण ही संभव हो सका है। ऐसे में भारी फीस वृद्धि और कुलपति के बुरे बर्ताव का आरोप लगा देने से बेहतरी की गुंजाइश बाधित होगी। घटना स्तब्धकारी है, और हर किसी को शिक्षण संस्थानों की मर्यादा का पालन करना ही होगा। उम्मीद है, सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन पूरे प्रकरण का वाजिब हल तलाशेंगे और ऐसी वारदात की पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे।
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