आईएस पर नजर रहे
केरल में इस्लामी स्टेट (आईएस) की आतंकी गतिविधियों के मॉड्यूल को ध्वस्त कर दिया गया है। एनआईए को मिली यह बड़ी सफलता देश के लिए बड़ी राहतकारी है।
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इन आतंकियों की साजिश सूबे के कुछ धार्मिक संस्थानों और नेताओं पर हमले करने का था। हालांकि इसका जिक्र नहीं है कि वे संस्थान किन धर्मो से संबंधित हैं, जिनकी इन आतंकियों ने रेकी की थी। पर वे किसी भी धर्म संप्रदाय की हो सकती हैं। वहां हिंदू-मुस्लिम और ईसाइयों की बड़ी आबादी रहती है, जिन पर हमले पर एक दूसरे धर्म के लोगों में परस्पर शक एवं वैमनस्य के बीज बो सकते थे। उनके बीच बने धार्मिक-सामाजिक सद्भावों को तार-तार कर सकते थे।
वहां की जनता का राजनीतिक रुझान मध्यमार्गी और वामपंथी है-जो हरेक पांच साल पर क्रमश कांग्रेस एवं वामपंथी गठबंधन में बनने वाली सरकारों में झलकती है। फिलहाल, वहां लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) की सरकार है। दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी वहां अपनी पैठ बनाना चाहती है, इससे वहां बदलाव का एक शुरूआती वातावरण बनता दिखता है।
इसे जारी रहने देने से भविष्य में जो हालात बनेंगे, वे इस्लामिक स्टेट के लिए उर्वर नहीं होंगे। इसलिए आईएस जो वैिक रूप से प्रतिबंधित है, उसके आतंकी केरल में उत्पात कर न केवल भारतीय गणराज्य में बल्कि दुनिया के देशों में उसके अशांत राज्य होने का संदेश भेजना चाहते हैं। उन्हें यह मुगालता है कि इसके जरिए वे स्थानीय खास समुदाय की जनता का भरोसा हासिल करेंगे और खुराफात करते रहेंगे। कहना नहीं होगा कि उनके कुत्सित मंसूबों के मुताबिक यहां कुछ भी होने नहीं जा रहा है।
एक तो यह कि प्रदेश की जनता की राजनीतिक विचारधारा जो भी रही हो, आतंकवाद के खिलाफ उसकी नीति शून्य सहनशीलता की रही है-जो प्रदेश और केंद्र की सरकारों की है। वह इस पर समझौता नहीं करती। पहले के और मौजूदा मामले में भी एनआईए को मिली सफलता में प्रच्छन्न जनसहयोग ही है। दूसरे, हमारी निगरानी एजेंसियों का बेहद मजबूत नेटवर्क है, जो किसी भी आतंकी खाके को फेल करने की ताकत रखती है।
किसी आतंकी साजिश या मॉड्यूल का भांडाफोड़ करने और इनके आतंकियों को पकड़ने में इन दो क्षमताओं में बेहतर तालमेल और भरोसा का होना जरूरी है।
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