छत्तीसगढ़ : दर्द को समझना जरूरी
छत्तीसगढ़ में दर्जनों युवकों ने सरकार के खिलाफ नग्न प्रदर्शन किया। वे कथित रूप से फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी कर रहे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग रहे थे।
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रायपुर के पंडारी थाना क्षेत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के इन युवकों को अश्लील तरीके से प्रदर्शन करने के आरोप में हिरासत में ले लिया गया। प्रदर्शनकारी अपनी मांगों को लेकर विधानसभा की तरफ नारेबाजी करते हुए बिल्कुल नग्न जा रहे थे। उनका आरोप है कि राज्य में 267 लोग फर्जी प्रमाणपत्र बना कर नौकरियां कर रहे हैं। परंतु प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। बेहद मामूली सी लगने वाली यह घटना अनदेखी करने वाली तो कतई नहीं है।
अनुसूचित जाति और जनजाति वालों को मिलने वाले विशेष आरक्षण या सुविधाओं के साथ यदि किसी भी तरह की छेड़छाड़ हुई है, तो उस पर प्रशासन द्वारा तत्काल संज्ञान लिया जाना चाहिए। यह बेहद दर्दनाक और दुखद बात है।
बेशक, कहा जा सकता है कि विरोध करने वालों का तरीका असभ्य था। उन्हें इस तरह निर्वस्त्र सड़कों पर नहीं निकलना चाहिए था। मगर बेरोजगारी की मार झेल रहे युवकों की मनोदशा का भी संज्ञान लेना जरूरी है।
जितना आहत और दुखी होकर उन्होंने इस तरह प्रदर्शन करने का विचार किया होगा, उसे बेहद संवेदनशीलता से ही समझा जा सकता है। अव्वल तो अपने समाज में बिना कपड़ों के प्रदर्शन किया ही नहीं जाता। लेकिन जब भी लोगों को मजबूरी में यह कदम उठाना पड़ा है, उसके मूल में कारण बेहद मार्मिक थे। विरोध दर्ज कराने के लिए प्रदर्शनकारियों द्वारा यदा-कदा टॉपलेस विरोध भी होता है।
सार्वजनिक तौर पर इस तरह कपड़े उतार कर कोई खुशी से तो नहीं निकलता। इस बात की सजा भी इन्हें बस सांकेतिक ही दी जानी चाहिए। क्योंकि इनका आशय किसी को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं था। न ही सार्वजनकि स्थल पर किसी प्रकार की अश्लीलता फैलाना था। इन युवकों की आहत भावनाओं को समझना सरकार व प्रशासन के लिए जरूरी है।
फर्जी दस्तावेज के आधार पर जरूरतमंदों का हिस्सा हथियाने वाले अपने यहां कम नहीं हैं। इनके विरोध का तरीका निंदनीय होने के बावजूद इनकी व्यथा सुनी जानी जरूरी है। राज्य सरकार को पहल करते हुए प्रदर्शनकारियों द्वारा लगाए आरोपों की त्वरित जांच करानी चाहिए और आरोपियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
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