कश्मीर में चुनौतियां बरकरार
केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर सरकार का प्रशासन और सरकारी तंत्र से जुड़कर अलगाववादी-आतंकवादी एजेंडा चलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का अभियान अनवरत जारी है।
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इसी अभियान के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार ने कश्मीर विविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी फहीम असलम, राजस्व सेवा के अधिकारी मुरावत हुसैन और एक पुलिस कांस्टेबल अरशिद अहमद ठोकेर को संविधान के अनुच्छेद 311 (2) सी के तहत सेवामुक्त कर दिया है।
सूबे की सरकार इन तीनों की गतिविधियों पर काफी दिनों से नजर रखे हुई थी। जांच में पाया गया कि ये तीनों सरकारी कर्मचारी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई तथा आतंकी संगठनों की ओर से भारतीय राज्य व्यवस्था के खिलाफ काम कर रहे थे। आतंकी संगठनों के लिए काम करने वाले ऐसे 52 कर्मचारियों को अब तक बर्खास्त किया गया है। इस बात से पता चलता है कि कश्मीर में आतंकी संगठनों ने अपना कितना मजबूत नेटवर्क खड़ा किया है।
कश्मीर विविद्यालय में जनसंपर्क अधिकारी के रूप में काम करने वाले फहीम की नियुक्ति में एकैआतंकी-अलगाववादी सरगना का हाथ बताया जा रहा है। वह 2008 से छात्र-छात्राओं के बीच आतंकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार कर रहा था। उसने सोशल मीडिया में अपने एक पोस्ट में लिखा था-‘एक सचाई जो कभी नहीं बदल सकती। कश्मीर हमेशा पाकिस्तान के साथ ईद मनाएगा। हम पाकिस्तान के साथ रहेंगे।’ मुरावत हुसैन मीर भी आतंकी संगठनों के लिए धन जुटाने का काम करता था।
अरशिद अहमद ठोकेर पुलिसवर्दी में आतंकी संगठनों जैश-ए-मुहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे प्रतिबंधित संगठनों के लिए काम करता था। सही मायने में ये तीनों आस्तीन के सांप थे। अभी न जाने कितने ऐसे आस्तीन के सांप सरकारी तंत्र में बैठकर देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं।
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया था। इसके बाद के इन चार वर्षो के दौरान सुरक्षा बल अलगाववादियों और आतंकवादियों के खिलाफ जो लड़ाई लड़ रहे हैं, उसमें उन्हें बहुत सफलता मिली है, लेकिन सरकार और सुरक्षाबलों के लिए चुनौतियां अब भी मौजूद हैं।
सूबे में अमन-चमन की वापसी हो रही है, लेकिन पड़ोसी पाकिस्तान जब तक आतंकवाद को हवा देता रहेगा, आतंकवाद सिर उठाता रहेगा।
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