West Bengal : हिंसा के बीच मतदान

Last Updated 10 Jul 2023 12:57:58 PM IST

पश्चिम बंगाल (West Bengal) में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (Panchayat Election) के दौरान शुक्रवार मध्य रात्रि से शुरू हुई हिंसा में शनिवार को देर शाम तक 15 लोग मारे गए। कुछ इलाकों में मतपेटियां नष्ट करने, मतपत्र जलाने और मतदाताओं को धमकाने की भी खबरें हैं।


हिंसा के बीच मतदान

राजनीतिक दल हिंसा के लिए एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। मरने वालों में टीएमसी, भाजपा, माकपा, कांग्रेस और आईएसएफ (इंडियन सेक्युलर फ्रंट) के कार्यकर्ता शामिल हैं। मुर्शिदाबाद, नदिया, दक्षिण 24 परगना और नंदीग्राम में सर्वाधिक हिंसा हुई।

मतगणना 11 जुलाई को होगी और उस दिन भी हिंसा होने की आशंका है।  आशंका का आधार यह है कि ग्राम पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति की करीब 64 हजार सीटों पर चुनाव की घोषणा 8 जून को होने के बाद से ही हिंसा की घटनाएं बढ़ गई थीं।

सुरक्षा प्रबंधों को लेकर चुनाव आयोग शुरू से कठघरे में रहा। पहले हाई कोर्ट फिर सुप्रीम कोट को दखल देना पड़ा। सुरक्षा बलों की तैनाती को लेकर भी विभिन्न राजनीतिक दलों ने असंतोष जताया था। स्थानीय स्तर के चुनावों में हिंसा की घटनाएं शर्मसार कर देने वाली हैं। लोकतंत्र को कलंकित करती हैं। दरअसल, पश्चिम बंगाल में राजनीति में हिंसा की संस्कृति को वामपंथियों के शासन के दौरान अच्छे से पाला-पोसा गया। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को मिटा देने को सदा आतुर रहे वामपंथियों की सत्ता को राज्य की मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खासे संघर्ष के बाद उखाड़ फेंका लेकिन हिंसा की संस्कृति को विरासत के रूप में सहेजे रखा।

टीएमसी के कार्यकर्ता और नेता राज्य में अपना वर्चस्व जमाए रखने में हिंसक गतिविधियों में लिप्त होने से भी गुरेज नहीं करते। उनको कड़ा जवाब देने के फेर में अन्य पार्टियों के कार्यकर्ता भी कसर नहीं छोड़ते। चुनाव के दौरान तो स्थिति बद से बदतर हो जाती है। मतदाता भ्रमित हो जाता है कि आखिर, किसे चुने जिसके हाथ में उसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

बहरहाल, हिंसा का माहौल बनना  कानून-व्यवस्था का मसला है, और राज्य में बेहतर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी सत्ताधारी टीएमसी की है, और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जवाबदेही से बच नहीं सकतीं। पंचायतों को विकास के लिए मिलने वाले धन को बढ़ाया गया है, और राज्य और केंद्र की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में पंचायतों की भागीदारी रहती है, इसलिए पंचायत चुनाव मलाई खाने की मंशा पैदा कर देता है। कट-कमीशन के लिए चुनाव जीतना जीवन-मरण का मामला जैसा हो गया है।



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