मुसीबत में श्रीलंका
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका अपने इतिहास के सर्वाधिक गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है, और हताश अवाम हिंसक विरोध-प्रदर्शनों पर उतर आया है।
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लोगों में फैले गुस्से और हिंसक प्रदर्शनों को देखते हुए शुक्रवार की रात देश में आपातकाल का ऐलान कर दिया गया। इस बीच, राजपक्षे सरकार को समर्थन दे रहे 11 दलों ने कैबिनेट भंग कर अंतरिम सरकार के गठन की मांग की। वास्तव में श्रीलंका में हालात खासे बिगड़ चुके हैं। सरकार जरूरी चीजों का आयात नहीं कर पा रही है, और डीजल-पेट्रोल की कमी के बीच घंटों बिजली कटौती करनी पड़ रही है।
भारत ने अच्छे पड़ोसी का फर्ज निभाते हुए 40 हजार टन मीट्रिक टन डीजल श्रीलंका पहुंचाया है। एक अरब डॉलर की सहायता का वादा किया है, और जल्द ही 40 हजार मीट्रिक टन चावल भी पहुंचाएगा। दरअसल, श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के चरमराने के संकेत उसके चीन के कर्ज जाल में फंसने के बाद से ही मिलने लगे थे।
लेकिन यूक्रेन और रूस की लड़ाई से डीजल-पेट्रोल के वैश्विक परिदृश्य में स्थितियां सामान्य नहीं रह जाने ने ताबूत में आखिरी कील का काम किया। खासकर इसलिए कि श्रीलंका के बुनियादी आर्थिक कारक पहले से ही मजबूत नहीं रह गए थे। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने से स्टेशनरी जैसी चीजें भी वह आयात नहीं कर पा रहा था। पड़ोसी देश पाकिस्तान का भी यही हाल है। राजनीतिक असंतोष के हालात हैं, और आर्थिक कारक भी मजबूत नहीं हैं। पाकिस्तान पर भी चीन ने कर्ज का जाल फेंका हुआ है।
श्रीलंका और पाकिस्तान, भारत के दोनों पड़ोसी देश, में आमजन महंगाई का दंश झेलने को विवश है, तो इनकी नीतियों का भी इसमें बड़ा हाथ है। उस पर राजनीतिक अस्थिरता भी रही जिसने चरमराती आर्थिक स्थिति को असहनीय बना दिया है। पाकिस्तान में नेशनल असेंबली भंग कर दी गई है, और तीन महीने में चुनाव कराए जाने हैं।
श्रीलंका में एक ही परिवार के लोग सत्ता में काबिज हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री और खेल मंत्री के पद पर राजपक्षे परिवार के लोग आसीन हैं। माना जा रहा है कि श्रीलंका के मौजूदा हताशा भरे हालात के लिए राजपक्षे परिवार भी जिम्मेदार है। भारत पड़ोसी देशों में बिगड़ते हालात से मुंह फेरे नहीं रह सकता। सतर्क रहते हुए पड़ोसी धर्म निभाना होगा।
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