करवट बदलती कूटनीति
दुनिया में भारत की बढ़ती अहमियत को हाल की कुछ घटनाओं से आसानी से समझा जा सकता है। इनमें से एक रूसी विदेश मंत्री सग्रेई लावरोव और अमेरिकी उप रक्षा सलाहकार दलीप सिंह की भारत यात्रा भी है।
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लावरोव जहां भारत की प्रशंसा कर रहे थे वहीं दलीप सिंह रूस से संबंधों को लेकर चीन का नाम लेकर भारत को आगाह कर रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जहां लावरोव से आमने सामने की मुलाकात की वहीं दलीप सिंह हाथ मलते रह गए।
प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को लावरोव के साथ बैठक में यूक्रेन में जल्द से जल्द हिंसा खत्म करने का आह्वान किया और संघर्ष सुलझाने के लिए शांति प्रयासों में योगदान देने के लिए भारत की रजामंदी जताई। लावरोव ने कहा कि अमेरिकी दबाव से भारत-रूस संबंध प्रभावित नहीं होंगे और भारत यूक्रेन समस्या के समाधान के लिए मध्यस्थता करना चाहता है तो ऐसी प्रक्रिया का समर्थन किया जा सकता है। लावरोव ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ लंबी बातचीत के बाद प्रधानमंत्री से मुलाकात की। लावरोव ने कहा हम भारत को किसी भी सामान की आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं जो भारत खरीदना चाहता है। भारत अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के प्रति अपने ‘न्यायसंगत और तर्कसंगत दृष्टिकोण’ के साथ किसी प्रक्रिया का समर्थन करना चाहता है, तो कोई भी इसके खिलाफ नहीं होगा। लावरोव की यात्रा से इस बात को समझा जा सकता है कि रूस भारत के साथ अपने संबंधों को और प्रगाढ़ करना चाहता है।
अमेरिकी प्रतिबंधों की काट खोजने के प्रयास में रूस भारत जैसे देशों के साथ राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार करने की प्रणाली विकसित कर रहा है, जिससे डॉलर आधारित भुगतान प्रणाली पर निर्भरता कम की जा सके। विदेश मंत्री जयशंकर के साथ बातचीत के बाद लावरोव ने कहा कि रूस अपने सहयोगियों और भागीदारों के साथ द्विपक्षीय व्यापार की बाधाओं को दूर करने के तरीके ढूंढ रहा है। भारत के साथ व्यापार के लिए रुपया-रूबल भुगतान प्रणाली पूर्व में लागू की गई थी तथा इसे और मजबूत किया जा सकता है।
अधिक से अधिक लेन देन राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग करके और डॉलर-आधारित प्रणाली को दरकिनार करते हुए किया जाएगा। इस प्रणाली को समर्थन मिला तो इससे निसंदेह अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अमेरिकी डॉलर के दबदबे पर भारी असर पड़ेगा। यह अमेरिका के लिए ऐसा झटका होगा जिससे उबरना उसके लिए बेहद मुश्किल होगा। रूस-यूक्रेन युद्ध के बहाने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति भी करवटें बदल रही है। भारत की निष्पक्षता की नीति की अहमियत भी निरंतर बढ़ती जा रही है।
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