लोकलुभावन योजनाओं पर चिंता
अब लगता है केंद्र और राज्यों में उन योजनाओं को लेकर ठनने वाली है, जिन्हें राज्यों ने लोक कल्याणकारी कहकर लागू किया है। लेकिन वे वस्तुत: लोकलुभावन साबित हुई हैं।
![]() लोकलुभावन योजनाओं पर चिंता |
प्रधानमंत्री के साथ हुई केंद्र के बड़े नौकरशाहों की बैठक में कई नौकरशाहों ने इन योजनाओं को अव्यावहारिक कहकर इन पर सवाल उठाए हैं और आशंका जताई है कि ये योजनाएं राज्यों को श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट में धकेल सकती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित अपने शिविर कार्यालय में सभी विभागों के सचिवों के साथ बैठक की थी। चार घंटे तक चली बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा और कैबिनेट सचिव राजीव गौबा के अलावा केंद्र सरकार के अनेक शीर्ष नौकरशाह शामिल हुए। बैठक में प्रधानमंत्री ने नौकरशाहों से साफ कहा कि वे प्रमुख विकास परियोजनाओं को नहीं लेने के बहाने के तौर पर गरीबी का हवाला देने की पुरानी आदत को छोड़ दें और बड़ा दृष्टिकोण अपनाएं।
उन्होंने कोरोना महामारी के दौरान सचिवों के एक टीम की तरह काम करने की सराहना की अेैर कहा कि उन्हें भारत सरकार के सचिवों के रूप में और हमेशा एक टीम की तरह ही कार्य करना चाहिए। बैठक में 24 से अधिक सचिवों ने विचार व्यक्त किए। दो सचिवों ने हाल के विधानसभा चुनावों में एक राज्य में घोषित एक लोकलुभावन योजना का उल्लेख किया जो आर्थिक रूप से खराब स्थिति में है। उन्होंने अन्य राज्यों में भी इसी तरह की योजनाओं का हवाला देते हुए कहा कि वे आर्थिक रूप से टिकाऊ नहीं हैं और राज्यों को श्रीलंका के रास्ते पर ले जा सकती हैं। श्रीलंका वर्तमान में इतिहास के सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है।
यहां लोगों को आवश्यक वस्तुओं, ईधन, रसोई गैस और बिजली संकट का सामना करना पड़ रहा है। लोकलुभावन योजनाओं की शुरुआत जयललिता ने मुफ्त साड़ी, टीवी, मंगलसूत्र से की थी, जिन्हें बाद के दशक में उत्तर भारत में भी अपनाया गया। आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल ने इनको मुफ्त बिजली, पानी जैसी योजनाओं में बदल दिया। आज दिल्ली के साथ ही पंजाब में भी आप की सरकार है। आज राज्य ही नहीं केंद्र सरकार भी आप जैसी योजनाओं की पेशकश करती है। वित्तीय संकट न हो तो इन पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
Tweet![]() |