तेल की कीमतें कैसे थमे
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर जल्द भारतीयों की जिंदगी पर पड़ने वाला है।
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पहले ही से आशंका जताई जा रही है कि विधानसभा चुनावों में अंतिम चरण के मतदान के बाद कभी भी पेट्रोलियम पदाथों के दाम बढ़ सकते हैं। अब ऐसा होना अवश्यंभावी लगता है क्योंकि पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाये गये प्रतिबंधों का असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ने लगा है। पश्चिमी देशों ने हालांकि रूस के कच्चे तेल के निर्यात पर प्रत्यक्ष प्रतिबंध नहींंलगाये हैं, लेकिन उस पर लगाये अन्य आर्थिक प्रतिबंध कच्चे तेल की कीमतों को आसमान चढ़ा रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम लगातार रिकार्डतोड़ स्तर पर बने हुए हैं। सामरिक तेल भंडारों से तेल जारी करने का दांव भी कीमतों को काबू रखने में विफल साबित हुआ है। कीमतें आठ साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं। लंदन का ब्रेंट क्रूड बुधवार को पांच प्रतिशत की छलांग लगाकर 111 डॉलर प्रति बैरल के पार हो चुका है। अमेरिकी क्रूड भी पांच फीसद की तेजी से 108 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया, जो सितम्बर 2013 के बाद का उच्चतम है। सरकार के कहने पर दाम न बढ़ाकर तेल कंपनियां 8 से 10 रुपये प्रति लीटर तक का घाटा उठा रही हैं जो कि अधिक समय तक उठाना संभव लगता।
प्रतिबंधों से रूस का तेल निर्यात भी प्रभावित होने की आशंका है इसीलिए भारत की दूसरी सबसे बड़ी सरकारी तेल शोधक कंपनी भारत पेट्रोलियम अप्रैल में तेल आयात के लिये खाड़ी के देशों से बात कर रही है। भारत पेट्रोलियम को आशंका है कि प्रतिबंधों के कारण रूस से खरीदे गए तेल की डिलीवरी प्रभावित होगी। विशेषज्ञों को आशंका है कि ब्रेंट क्रूड आने वाले समय में 115 से 125 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकता है।
चिंता की बात यह भी है कि अमेरिका सहित अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के सभी 31 सदस्य देशों की सरकारों द्वारा अपने रणनीतिक भंडार से 6 करोड़ बैरल तेल जारी करने की प्रतिबद्धता भी रूस के यूक्रेन पर हमले के कारण सकते में आए बाजारों को शांत करने में विफल रही है। स्थिति यह हो गई है कि यदि यूक्रेन युद्ध में जल्द हार मान भी लेता है तो भी अंतरराष्ट्रीय बाजार की व्यवस्था इतनी गड़बड़ा चुकी है कि यह तेल के चढ़ते मूल्य थामने में विफल साबित होगा और फिलहाल युद्ध लंबा ही खिंचता जा रहा है।
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