निशाने पर आबादी
आमतौर पर युद्ध के दरम्यान आबादी वाले इलाकों में दुश्मन देश हमला करने से बचते हैं।
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अतीत में ज्यादातर लड़ाई में रिहायशी इलाकों और आमजनों को निशाना नहीं बनाने के नियम-कायदों का बेहद ईमानदारी से पालन किया गया है। यही वजह है कि मरने वालों में सैनिकों की संख्या आमलोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है। मगर रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में नैतिकता और मर्यादा का पाठ कहीं पीछे छूट गया है। दोनों देशों के बीच युद्ध के आठ दिन हो चुके हैं। शुरुआती दिनों में तो रूसी सेना ने सैन्य ठिकानों तक हमला केंद्रित रखा।
किंतु अब जिस तरह की खबरें आ रही हैं, वह ज्यादा चिंताजनक है। रूस ने जो सोचा था, वैसा कुछ भी नहीं होने की खीझ में वह यूक्रेन के नागरिक इलाकों में बर्बरता से बमबारी कर रहा है। यूक्रेन के खारकीव, बुका, कीव और इरपिन में रूसी सेना ने रिहायशी इलकों में मिसाइलें व रॉकेटों से भयंकर तबाही मचाई है और इन शहरों के ज्यादातर इलाके अब खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं। मलबों में शव पड़े हैं और उन्हें उठाने वाला कोई नहीं है। इनमें सैनिकों के अलावा बच्चे और महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा बताई जा रही है। नागरिकों पर हमला करने की रूस की इस बदली रणनीति से हर कोई हलकान है।
आंकड़े भी रूस की बर्बरता की कहानी बयां करते हैं। यूक्रेन की आपात सेवा के मुताबिक रूसी हमलों में अभी तक दो हजार से ज्यादा नागरिक मारे जा चुके हैं। अगर इस आंकड़े को एकतरफा भी मानें तो भी जानमाल का नुकसान यही परिलक्षित कर रहा है कि अब युद्ध में नैतिकता, ईमानदारी और मर्यादा की कोई जगह नहीं बची है। युद्ध में जीत हासिल करना सबसे अहम है। कहते हैं कि युद्ध के दौरान उन तबकों को भी भुगतना पड़ता है, जिसके लिए वे लोग शायद ही जिम्मेदार होते हैं।
युद्ध का यह कड़वा सच है। इसलिए तमाम देशों को बड़े पैमाने पर खून-खराबा रोकने के लिए आगे आने की जरूरत है। अच्छी बात यह है कि बमबारी और रॉकेट हमले के बीच शांति के लिए वार्ता भी की जा रही है। हो सकता है, एकाध दिनों में कुछ सकारात्मक परिणाम निकले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से बातचीत के निश्चित तौर पर सकारात्मक परिणाम आएंगे, ऐसा भरोसा है। दोनों पक्षों को अपनी जिद को दफन करना होगा, तभी मानवता का कल्याण होगा। जिद और अहंकार से तो पतन ही होता है।
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