विकास की नहर
नदी जोड़ो परियोजना को पिछले बुधवार को कैबिनेट की मंजूरी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को खास अहमियत रखने वाली सरयू नहर परियोजना राष्ट्र को समर्पित की।
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पांच नदियों तथा नौ जनपदों को जोड़ने वाली इस राष्ट्रीय परियोजना का काम अस्सी के दशक में शुरू हुआ था, लेकिन अंजाम तक पहुंचना चार दशक बाद संभव हुआ है। गोंडा सहित नौ जिलों के 6227 गांवों के लगभग 30 लाख किसानों के लिए यह नहर वरदान साबित होगी। इससे किसानों को महंगी सिंचाई समेत अनेक परेशानियों से छुटकारा मिलेगा। 1978 में बहराइच व गोंडा की सिंचन क्षमता के विस्तार के लिए घाघरा कैनाल नामक परियोजना का शुभारंभ हुआ था।
सुरसा की तरह परियोजना की लागत बढ़ती गई और काम भी पूरा नहीं हुआ। 1982 में परियोजना का विस्तार करते हुए अन्य जिलों को भी इसमें शामिल करके इसका नाम ट्रांस घाघरा-राप्ती-रोहिणी कर दिया गया। लेकिन बाद में इसका नाम सरयू नहर परियोजना कर दिया गया। करीब सवा लाख किमी. में फैली परियोजना के तहत जिले भर में 6,600 किमी. लंबी छोटी-बड़ी नहरों का जाल बिछ चुका है। इससे 15 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। क्षेत्र के किसान, परियोजना में अत्यधिक देरी की वजह से भारी नुकसान उठा रहे थे, परियोजना में पांच नदियों-घाघरा, सरयू, राप्ती, बाणगंगा और रोहिणी को आपस में जोड़ने का प्रावधान किया गया है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के नौ जिलों-बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, गोरखपुर और महाराजगंज के किसान इससे लाभान्वित होंगे। प्रधानमंत्री ने परियोजना में देरी के लिए पिछली सरकारों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि इससे किसानों को सौ गुना ज्यादा कीमत भुगतनी पड़ी है। जब इस परियोजना की शुरुआत हुई थी तब इसकी अनुमानित लागत 100 करोड़ रुपये थी। अब यह परियोजना लगभग 10 हजार करोड़ रुपये के खर्च से पूरी हो सकी है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने परियोजना का काम पूरा करने का श्रेय सत्तारूढ़ योगी सरकार द्वारा लेने पर तंज कसते हुए कहा है कि इस परियोजना का तीन चौथाई काम सपा सरकार के कार्यकाल में ही पूरा हो गया था। शेष बचे काम को पूरा करने में भाजपा सरकार ने पांच साल लगा दिए। जो भी हो इस नहर से क्षेत्र के विकास का नया अध्याय तो शुरू हो ही गया है।
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