पसंद का रहे ख्याल
गुजरात हाई कोर्ट ने अहमदाबाद नगर निगम के उस अभियान पर कड़ी नाराजगी जताई है, जिसके तहत मांस-अंडा बेचने वाली रेहड़ियों को चुन-चुन कर हटाया जा रहा है।
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रेहड़ी-ठेले जब्त कर लिए गए हैं। अदालत ने कहा कि आखिर, आप लोगों को घर से बाहर उनकी पसंद का खाना खाने से रोक कैसे सकते हैं? यह टिप्पणी अदालत ने करीब 20 रेहड़ी-पटरी वालों की याचिका का निपटारा करते हुए की। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस बिरेन वैष्णव ने कहा कि क्या नगर निगम आयुक्त फैसला करेंगे कि मैं क्या खाऊं? कल को वे कहेंगे कि मुझे गन्ने का रस नहीं पीना चाहिए क्योंकि उससे मधुमेह हो सकता है, या कहेंगे कि कॉफी सेहत के लिए खराब है।
क्या ये सब इसलिए कहेंगे कि सत्ता में बैठा व्यक्ति अचानक सोचता है कि वह क्या करना चाहता है। हालांकि अहमदाबाद नगर निगम ने मांसाहारी भोजन बेचने वाले ठेलों के खिलाफ भेदभाव करने संबंधी आरोप से साफ इनकार किया। लेकिन अहमदाबाद नगर निगम की शहर योजना एवं एस्टेट समिति के अध्यक्ष देवांग दानी के उस कथन का क्या करें जब एक महीने पहले उन्होंने कहा था कि स्कूलों, कॉलेजों, उद्यानों और धार्मिक स्थलों के 100 मीटर के दायरे में और प्रमुख सड़कों पर अंडा और मांसाहारी भोजन बेचने वाले ठेलों को हटाया जाएगा।
अहमदाबाद में भाजपा शासित नगर निगम है। वैसे गुजरात सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि लोग अपनी पसंद का खाने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन जन प्रतिनिधि हैं कि अपने पूर्वाग्रह और दुराग्रह थोपने से बाज नहीं आ रहे। ज्यादा दिन नहीं हुए जब राजकोट के एक जन प्रतिनिधि ने ठेलों पर मांसाहारी भोजन बेचने वालों के खिलाफ नकारात्मक टिप्पणी की थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश अधिवक्ता रॉनित जॉय कहा कि अहमदाबाद नगर निगम ने स्वच्छता बनाए रख पाने की बात कहते हुए मांसाहारी भोजन परोसने वाले ठेले-ठीए हटवा दिए। इसे ‘कट्टरता’ करार देते हुए उन्होंने कहा कि व्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण करने का हक किसी को नहीं है।
बहरहाल,जनता के निर्वाचित लोगों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि संविधान का अनुच्छेद 21 जनता को क्या खाना है, क्या पहनना है आदि जैसी व्यक्तिगत स्वस्तंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है।
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