कोर्ट का सख्त रुख
सर्वोच्च न्यायालय ने लखीमपुर खीरी हिंसा की अब तक की जांच पर सवालिया निशान लगाते हुए साफ कहा है कि किसानों को कुचलने की वारदात और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले को जोड़कर जांच करने का मकसद एक विशेष अभियुक्त को फायदा पहुंचाना है।
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प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस सुर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने यूपी पुलिस की जांच को लेकर अदालत में पेश स्टेटस रिपोर्ट पर कहा कि इसमें कुछ नया नहीं है।
रिपोर्ट को असंतोषजनक करार देते हुए कहा कि उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में तफ्तीश होनी चाहिए। यह भी कि वह सेवानिवृत्त न्यायाधीश उत्तर प्रदेश से बाहर का होना चाहिए। पीठ ने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी के मसले पर राज्य सरकार का पक्ष मांगा है। मामले की सुनवाई अब 12 नवम्बर को होगी। पीठ ने एसआईटी की जांच को ढुलमुल बताते हुए नाराजगी जताई। एक अभियुक्त को छोड़कर बाकी के मोबाइल फोन अभी तक बरामद क्यों नहीं किए गए।
गौरतलब है कि तीन अक्टूबर को किसानों का एक समूह जब उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के लखीमपुर खीरी दौरे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा था तो एक एसयूवी ने किसानों के हुजूम को रौंद दिया था। एसयूवी द्वारा कुचले जाने से चार किसानों की मौके पर ही मौत हो गई थी। घटना से गुस्साए प्रदर्शनकारियों द्वारा कथित मारपीट में भाजपा के दो कार्यकर्ता और वाहन चालक की मौत हो गई। हिंसा में एक स्थानीय पत्रकार की भी मौत हुई। अदालत ने कहा कि पत्रकार की मौत और किसानों के कुचले जाने की एफआईआर को ओवरलैप करते हुए साथ जोड़ दिया गया है।
दोनों मामलों की अलग-अलग जांच क्यों नहीं हो रही। यूपी सरकार की ओर से पीठ के समक्ष पेश हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने अदालत को आश्वस्त किया कि दोनों मामलों की अलग-अलग जांच हो रही है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हम किसानों, पत्रकार और राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं की अलग-अलग निष्पक्ष जांच चाहते हैं। बहरहाल, शीर्ष अदालत के रुख से आस्ति मिली है कि जांच निष्पक्ष, स्वतंत्र होगी, जिससे कानून के शासन में विश्वास और पुख्ता होगा। दोषी बख्शा नहीं जाएगा, भले ही वह राजनीतिक रूप से कितना ही ताकतवर क्यों न हो।
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