ट्रंप की तिलमिलाहट
फिलिस्तीन और पश्चिम एशिया के लिए कोई न्याय की बात करे यह बात नेतन्याहू और ट्रंप को हजम नहीं होती।
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यही कारण है कि जब ब्रिक्स देशों ने पश्चिम एशिया में जारी संघषर्, अस्थिरता और गाजा के खिलाफ इस्रइली हमलों और कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की तो ट्रंप तिलमिला उठे। जब ट्रंप अपने देश में यहूदी विरोध के बहाने अपने ही विविद्यालयों पर तमाम पाबंदियां लगा सकते हैं तो ब्रिक्स देशों की यह हरकत कैसे बर्दाश्त करते। फलस्वरूप उन्होंने इन देशोें पर ही अतिरिक्त 10 प्रतिशत शुल्क लगाने की धमकी तक दे डाली। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त घोषणापत्र ट्रंप के तिलमिलाने का कारण साबित हुआ।
घोषणापत्र में कही गई हर बात ट्रंप और नेतन्याहू का मुंह ही नहीं चिढ़ाती, बल्कि इसकी भी झलक दिखाती है कि बदलती दुनिया क्या चाहती है। घोषणापत्र में ब्रिक्स देशों ने दोहराया कि इस्रइल-फिलिस्तीन संघर्ष का न्यायसंगत और स्थायी समाधान शांतिपूर्ण तरीकों से ही प्राप्त किया जा सकता है।
यह फिलिस्तीनी लोगों के वैध अधिकारों की पूर्ति पर निर्भर करता है, जिसमें आत्मनिर्णय और वापसी के अधिकार शामिल हैं। ब्रिक्स ने क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का पालन करने का आह्वान किया है, और मानवीय सहायता के राजनीतिकरण और सैन्यीकरण के प्रयासों की ¨नदा की। घोषणापत्र सामने आते ही ट्रंप ने तीखी प्रतिक्रिया जताई और ब्रिक्स देशों पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दे डाली और कहा कि इसका कोई अपवाद नहीं होगा।
लगता है कि ट्रंप ने अपवाद न होने वाली बात कह कर भारत को भी अपना रुख कड़ा करने का इशारा दे दिया है। चीन ने राष्ट्रपति ट्रंप की इस धमकी पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए इसे राजनीतिक दबाव का निर्थक साधन बताया। लेकिन ट्रंप भारत के साथ एक बड़े व्यापार समझौते का जो इशारा देते रहे हैं, लगता है वह उलझ सकता है। अभी तक तो भारत इस्रइल विरोधी किसी भी मुहिम में शामिल होने से किनारा करने की नीति पर चलता रहा है, लेकिन लगता है कि ब्रिक्स घोषणापत्र भारत की मजबूरी बन गया है।
ब्रिक्स के मूल सदस्यों में शामिल रूस और चीन के तो अमेरिका के दबाव में आने की बात सोचना भी संभव नहीं है, लेकिन भारत, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के लिए दिक्कतें बढ़ने वाली हैं।
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