ओछी राजनीति
भारतीय राजनीति का चेहरा कितना बदरंग होता जा रहा है, इसकी मिसाल जम्मू-कश्मीर पुलिस का गिरफ्तार डीएसपी दविंदर सिंह है, जिसकी खूंखार आतंकवादियों के साथ साठगांठ का पता चला है।
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इसकी गिरफ्तारी बहुत ही संवेदनशील मसला है, और सीधे-सीधे देश की सुरक्षा से जुड़ा है, बावजूद इसके देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस बहुत ही छिछले स्तर पर उतर कर राजनीति कर रही है।
कांग्रेस एक ओर बर्खास्त डीएसपी के तार पुलवामा अटैक से जोड़कर सवाल उठा रही है, और दूसरी ओर लोक सभा में इसके वरिष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी ने ट्विट करके कहा कि दविंदर का नाम दविंदर खान होता तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिक्रिया ज्यादा तीखी होती। देश में करीब छह दशकों से ज्यादा समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी से इस तरह की छिछली राजनीति की अपेक्षा नहीं थी। जांच एजेंसियों को शुरुआती जांच-पड़ताल में पता चला है कि दविंदर का लंबे समय से आतंकवादियों के साथ संपर्क था। वह आतंकवादियों को अपने घर में पनाह देता था।
कह सकते हैं कि आतंक के साथ उसका रोटी-बेटी का रिश्ता था। दविंदर की जांच का जिम्मा एनआईए को सौंप दिया गया है, विस्तृत जांच के बाद ही पता चल पाएगा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस में इसके तार कहां-कहां जुड़े थे। सवाल यह है कि अगर दविंदर देशद्रोह के इस पूरे घटनाक्रम में महज एक मोहरा है तो उसका आका कौन है जिसके लिए वह काम कर रहा था। सवाल यह भी है कि संसद पर हमले का दोषी आतंकी अफजल गुरु के उस पत्र के बाद भी जांच एजेंसियां क्यों खामोश रहीं जिसमें दविंदर का आतंकियों के साथ संपर्क का खुलासा किया गया था।
साल 2004 में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद आतंकी अफजल गुरु ने अपने वकील सुशील कुमार को पत्र लिख कर बताया था कि इसी दविंदर (तब वह स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात था) के कहने पर उसने संसद पर हमला करने वाले पाकिस्तानी आतंकी मोहम्मद के रहने के लिए मकान और कार की व्यवस्था की थी। बड़ा सवाल यह भी है कि अदना सा पुलिस अफसर एक दशक से ज्यादा समय से आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहा और इसकी भनक इतने दिनों बाद लगी। दविंदर के आतंक के तार का दूसरा सिरा कहां जाकर खुलेगा, अभी कहा नहीं जा सकता। इसीलिए इतने गंभीर और संवेदनशील मसले पर ओछी राजनीति नहीं होनी चाहिए।
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