आस्तीन का सांप!
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के साथ डीएसपी का गिरफ्तार होना असामान्य घटना है। निश्चय ही इससे जम्मू-कश्मीर पुलिस की छवि को धक्का लगा है।
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डीएसपी हिजबुल मुजाहीद्दीन के दो आतंकवादियों को कार में बिठाकर ले जा रहा था, जिनके पास मारक हथियार थे। अपनी विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डीएसपी का 12 लाख रु पयों के लिए देश की सुरक्षा से सौदा करना हतप्रभ करने वाला है। अगर रक्षक ही भक्षक बन जाए तो फिर रक्षा कौन करेगा? उसके खिलाफ आतंकवाद से संबंधित गैर कानूनी गतिविधियां निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज हुआ है।
जितना कुछ सामने आया है उसे मान लिया जाए तो वह वर्दी पहने हुए आतंकवादी था। उसके घर से अवैध हथियार भी बरामद हुए हैं। इस कल्पना से ही सिहरन पैदा हो जाती है कि वह डीएसपी श्रीनगर हवाई अड्डे जैसे महत्त्वपूर्ण संवेदनशील स्थान पर तैनात था। एक दिन पहले विदेशी राजनयिकों के साथ था और दूसरे दिन से उसने चार दिन की छुट्टी का आवेदन इसलिए दे रखा था क्योंकि इन आतंकवादियों को उसे चंडीगढ़ पहुंचाकर वहां हथियारों का सौदा कराना था। यह तो कोई नहीं कह सकता कि जम्मू-पुलिस का पूरा महकमा ही आतंकवादियों का समर्थक है।
पुलिस ने पिछले कुछ सालों में जिस तरह अन्य सुरक्षा बलों के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ अभियानों में काम किया है वह प्रशंसनीय है। कई एजेंसियां डीएसपी से पूछताछ कर रही हैं, जिनमें अनेक तथ्य सामने आए होंगे। हो सकता है उससे पूछताछ में कुछ दूसरे पुलिसवालों का भी नाम सामने आए। उसने पहली बार ऐसा काम किया होगा ऐसा भी नहीं लगता। इसलिए पूर्व में उसने कब कितने आतंकवादियों का सहयोग किया, इसकी जानकारी भी जरूरी है।
वास्तव में उसके अलावा अब यह जरूरी हो गया है कि एक बार पुलिस के अंदर ठीक प्रकार से तफ्तीश हो जाए ताकि आगे कोई धोखा न हो। आतंकवादग्रस्त क्षेत्र में एक पुलिस भी यदि आतंकवादियों से मिला हो तो फिर अनेक अभियानों को ध्वस्त करा सकता है। ये आस्तीन के सांप हैं, जिनको तलाशकर पिंजड़े यानी जेल में आतंकवादियों की तरह ही डालना जरूरी है। साथ ही दूसरे पुलिस वाले आतंकवादियों के जाल में न फंसे इसके लिए अलग से वर्ग लगाकर उनको मानसिक रूप से मजबूत करने की भी आवश्यकता है।
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