नैतिक समर्थन का पत्र

Last Updated 14 Jan 2020 05:53:01 AM IST

देश के दो सौ से अधिक शिक्षाविदें और कुलपतियों ने जेएनयू, जामिया, एएमयू और यादवपुर विश्वविद्यालय परिसरों में हुई हाल की घटनाओं को लेकर जो प्रतिक्रियाएं जाहिर की हैं, वह अपेक्षित थीं।


नैतिक समर्थन का पत्र

भाजपा-समर्थकों सहित देश का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि वामपंथियों ने विश्वविद्यालयों को राजनीति का अखाड़ा बना दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखने वाले शिक्षाविद् इसी श्रेणी में आते हैं। उनका विश्वास है कि देश में बिगड़ते अकादमिक माहौल के लिए वामपंथी कार्यकर्ताओं का एक छोटा समूह जिम्मेदार है। ये कार्यकर्ता छात्र राजनीति के नाम पर विध्वंसकारी धुर वाम एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। यह वामपंथ का दुर्भाग्य है कि उसने देश में जिस तेजी के साथ भाजपा का समर्थक वर्ग बढ़ा है, उसके कारणों को कभी भी सहानुभूतिपूर्ण समझने का प्रयास ही नहीं किया है। दरअसल, भारत का वामपंथी आंदोलन भारतीय समाज की निर्मिति को समझने में बड़ी गलती की है। उसने हिन्दू और मुसलमान के रिश्ते को भी एकपक्षीय ढंग से समझा है।

यही वजह है कि वामपंथ के जो सुधारवादी, संशोधनवादी, मानवतावादी आदि सकारात्मक सामाजिक निर्माण के तत्व थे, उन्हें वे सामाजिक क्षेत्र में उतारने में असफल रहे हैं और धीरे-धीरे ये सारे तत्व असरहीन होते चले गए। इसी की स्वाभाविक परिणति है, देश के शिक्षाविदें का प्रधानमंत्री के नाम लिखा पत्र। आगे वामपंथ का विरोध और तेज होगा और साथ-साथ सामाजिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया भी गति पकड़ेगी। आखिर वामपंथी पार्टियों ने क्या कभी ईमानदारी से इस सवाल पर चिंतन-मंथन किया है कि देश में उनका जनाधार क्यों सिमटता जा रहा है और भाजपा का क्यों बढ़ता जा रहा है। सवाल यह भी है कि आखिर क्यों देश के बहुत बड़े भू-भाग में वामपंथ और उसकी नीतियां संदिग्ध हो गई हैं? तटस्थ वर्ग के बड़े तबके का मानना है कि छात्र शिक्षण संस्थाओं में अपना बेहतर भविष्य बनाने के लिए जाते हैं, लेकिन वाम संगठनों से जुड़े छात्रों के आंदोलनों और विरोध प्रदर्शनों से अकादमिक माहौल खराब हो रहा है। किसी भी आंदोलन की सफलता इसमें निहित है कि तटस्थ लोग भी उससे जुड़े। वामपंथ के लिए यह विचारणीय है कि सीएए और एनसीआर के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन का विस्तार क्यों नहीं हो पा रहा है? शिक्षाविदें ने प्रधानमंत्री को जो पत्र लिखा है, वह निश्चित रूप सेअकादमिक माहौल बिगाड़ने वाले वामपंथियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का नैतिक समर्थन है।



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