विपक्षी एकता के अंतरविरोध
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के विरुद्ध बुलाई गई विपक्षी दलों की बैठक प्रभावहीन रही।
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इस बैठक में प्रमुख विपक्षी दल टीएमसी, बीएसपी, एसपी, टीडीपी, आप, डीएमके और कांग्रेस की नई सहयोगी पार्टी शिवसेना शामिल नहीं हुई। जाहिर है, जिस राजनीतिक लक्ष्य के साथ यह बैठक बुलाई गई थी वह पूरी नहीं हुई। यह बैठक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुलाई थी।
जिन सात दलों ने इस बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया उनके सांसदों की संख्या 83 है और कांग्रेस को छोड़कर जो 19 दल इस बैठक में शामिल हुए उनके सांसदों की संख्या 22 है। जबकि कांग्रेस के कुल 52 सांसद हैं। कांग्रेस ने जिन मुद्दों को लेकर यह बैठक बुलाई थी उस पर पूरा विपक्ष एकमत है। बावजूद इसके प्रमुख सात दल इसमें शामिल नहीं हुए तो इसका अर्थ बहुत स्पष्ट है कि ये सभी दल अभी कांग्रेस को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। यह बात विपक्षी खेमे में अंतर्विरोधों को उजागर करता है।
कहने वाले कहते हैं कि कुछ राजनीतिक दल बैठक में इसलिए शामिल नहीं हुए कि उनके खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा ईडी और सीबीआई के इस्तेमाल करने का भय है। थोड़ी देर के लिए इस कहानी को सच भी मान लिया जाए तो यह कहा जा सकता है कि उन सियासी दलों की अपनी भी कमजोरियां होंगीं। भाजपा जब से अपने बलबूते केंद्र की सत्ता में आई है तब से कांग्रेस अपने नेतृत्व में संयुक्त विपक्ष का मोर्चा बनाने के लिए प्रयासरत है, लेकिन वह सफल नहीं हो पा रही है। दरअसल, संयुक्त विपक्ष का नेतृत्व करने की महत्त्वाकांक्षा ममता बनर्जी, मायावती जैसे क्षत्रपों के मन में भी है।
यह एक बड़ी वजह हो सकती है जिसके चलते भाजपा के खिलाफ विपक्ष एकजुट नहीं हो पा रहा है। हालांकि इस समय केंद्र की भाजपा सरकार आर्थिक मंदी के साथ नये नागरिकता कानून के मोच्रे पर बैकफुट पर दिखाई दे रही है, उसके मद्देनजर विपक्ष के लिए एक मंच पर आने का यह सुनहरा अवसर है। अगर वास्तव में विपक्ष को भाजपा की जनविरोधी नीतियों से लड़ना है तो उन्हें अपने छोटे-छोटे राजनीतिक स्वाथरे से ऊपर उठकर एक छतरी के तले आना होगा। कांग्रेस अगर विपक्ष के साझा मंच की अगुवाई करना चाहती है तो उसे छोटे दलों को भरोसे में लेना होगा।
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