भारत की परमाणु नीति
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का यह कहना कि भारत परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल नहीं करने के सिद्धांत पर पूरी तरह प्रतिबद्ध है, लेकिन भविष्य में क्या होगा यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
भारत की परमाणु नीति |
इस पर देश के भीतर और बाहर प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक थी। कांग्रेस ने कहा कि सरकार मुहावरों में बात न कर स्थिति स्पष्ट करे, तो पाकिस्तान ने इसे गैर-जिम्मेदाराना बयान बताया। सरकार की ओर से इसका कोई खंडन न आने का यह मतलब निकाला जा सकता है कि रक्षा मंत्री का यह बयान आकस्मिक नहीं, बल्कि सुनियोजित है।
रक्षा मंत्री रहते हुए मनोहर पर्रिकर ने भी 2016 में इस तरह का बयान दिया था, लेकिन बाद में स्पष्टीकरण आया कि उनका बयान निजी हैसियत में दिया गया था। ऐसे में राजनाथ सिंह के बयान का क्या अर्थ निकाला जाए? क्या भारत की परमाणु नीति बदलने वाली है? क्या इसमें बदलाव की जरूरत है?
इन सवालों पर अनुमान ही लगाया जा सकता है, फिर भी रक्षा मंत्री के बयान का कालखंड इसका मतलब समझने में कुछ मददगार हो सकता है। रक्षा मंत्री के बयान को पाकिस्तान की उस आक्रामक प्रतिक्रिया के जवाब के रूप में देखा जाना चाहिए, जो जम्मू-कश्मीर का विशेष दरजा खत्म करने और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद आ रही है।
इसके पहले पाकिस्तान के हुक्मरान परमाणु हमले की धमकी देते रहे हैं। राजनाथ सिंह के बयान से साफ है कि भारत पाकिस्तान की परमाणु धमकी से डरने वाला नहीं है। अपने पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार पहले सर्जिकल स्टाइक और बाद में बालाकोट में हवाई हमले के जरिये इसका परिचय दे चुकी है। पहले पाकिस्तान यही समझता था कि वह भारत में आतंकी गतिविधि को बढ़ावा देता रहेगा और उसके परमाणु हथियार भारत को उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने से रोकेंगे। मोदी सरकार पहले ही भारत की नीतिगत जड़ता को तोड़ कर पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दे चुकी है।
ऐसी स्थिति में राजनाथ सिंह के बयान से पहली नजर में दो उद्देश्य पूरे होते हैं। एक इससे भारतीय सेना व भारत के लोगों का मनोबल ऊंचा होगा और दूसरे पाकिस्तान में भय का संचार होगा। पाकिस्तान को निश्चिंतता प्रदान करने के बजाय ऊहापोह में रखना समुचित रणनीति होगी। वैसे बदलता भू-राजनीतिक परिदृश्य भारत को अपनी पारंपरिक परमाणु नीति पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित कर सकता है।
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