पाबंदी में ढील
जम्मू कश्मीर के कुछ इलाकों मे कड़ी सुरक्षा व लोगों की आवाजाही पर पाबंदियों में ढील और लैंडलाइन सेवा व इंटरनेट की बहाली का अर्थ है कि प्रशासन लगातार स्थिति का आकलन करते हुए कदम उठा रहा है।
पाबंदी में ढील |
जम्मू के पांच जिलों में आवागमन से बंदिशें तो तो पहले ही कम कर दी गई थीं, अब इनमें 2जी मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बहाल करके शायद प्रभावों का आकलन किया जा रहा है।
इसी तरह कश्मीर के 35 पुलिस थाना क्षेत्रों में पाबंदियों में ढील और कुल 96 टेलीफोन एक्सचेंज में से 17 को बहाल कर दिए जाने की सूचना है। एक्सचेंज चालू होने से मध्य कश्मीर के बडगाम, सोनमर्ग और मनिगाम, उत्तरी कश्मीर में गुरेज, तंगमार्ग, उरी, केरन, करनाह और तंगधार, दक्षिण कश्मीर के काजीगुंड और पहलगाम और श्रीनगर के सिविल लाइंस, छावनी, हवाई अड्डा, राजबाग और जवाहर नगर जैसे इलाकों में लैंडलाइन सेवा चालू हो गई है।
घाटी में करीब 50,000 लैंडलाइन फोन काम कर रहे हैं। साफ है जो जगह सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील हैं, जहां आतंकवाद और अन्य किस्म की हिंसा या प्रदशर्न के खतरे हैं वहां सख्त सुरक्षा व्यवस्था एवं अन्य पाबंदियां कायम हैं। कहां कितना खतरा है इसका आकलन तो सुरक्षा एजेंसियां ही कर सकतीं हैं। अनुच्छेद 370 और 35 ए हटाने के पहले भी वर्षो से जम्मू-कश्मीर के कुछ क्षेत्र आतंकवाद, अलगावाद और हिंसा में छटपटाते रहे हैं। वहां समय-समय पर सख्ती और पाबंदियां पहले भी रहीं हैं। सोशल मीडिया के प्रभाव में हिसंक प्रदर्शनों और पत्थरबाजी का रिकॉर्ड वहां पुराना है।
इससे निर्दोष व आमलोगों को परेशानियां होतीं हैं और अभी भी हो रहीं हैं। प्रशासन इन स्थितियों थोड़ा-बहुत ही उनकी मदद कर रहा है। लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर में पता नहीं कितने वर्षो बाद ऐसा हुआ है जब दो सप्ताह में एक भी गोली नहीं चली। इसी सुरक्षा व्यवस्था ने भारत विरोधियों को अपने दड़बे में छिपने के लिए मजबूर किया है।
देश भी चाहता है कि जम्मू कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल हो, पर यह इतना आसान नहीं है। सीमा पार का हमारा पड़ोसी जो कुछ कर रहा है वह भी सामने है। युद्धविराम उल्लंघन एवं घुसपैठ की कोशिशें रोज हो रहीं हैं। इसमें सोच-समझकर ही सुरक्षा सख्ती और पाबंदी का अंत और संचार सेवाएं की पूरी तरह बहाली की जा सकतीं हैं।
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