हुड्डा के तेवर
जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी, तब समझा जा रहा था कि पार्टी मौजूदा संकट से उबर जाएगी यानी कांग्रेस किसी मसले पर सुचिंतित राय रखेगी।
हुड्डा के तेवर |
पार्टी में गुटबाजी, अनुशासनहीनता एवं उसे छोड़कर जाने की प्रवृत्ति खत्म हो जाएगी।
हालांकि सोनिया गांधी को पार्टी की कमान संभाले ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, लेकिन उनके कद को देखते हुए ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो मानते हैं कि उनके आते ही पार्टी की स्थिति पूरी तरह बदल जाएगी। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रोहतक में महापरिवर्तन रैली में जो तेवर दिखाए, वे यही संकेत करते हैं कि पार्टी में अब भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है।
उन्होंने कहा कि वह सभी बंधनों से मुक्त होकर आए हैं, और जनता की लड़ाई के लिए कोई भी फैसला करने को तैयार हैं। उन्होंने नई पार्टी की घोषणा तो नहीं की है, लेकिन एक समिति जरूर बना दी है। यही नहीं, भावी विधानसभा चुनाव के लिए घोषणा-पत्र तक जारी कर दिया। जिस दिशा में उन्होंने कदम बढ़ाया है, उसे तार्किक परिणति तक पहुंचने में समय लगेगा। इस बीच पार्टी नेतृत्व से कोई सम्मानजनक समझौता हो गया तो ठीक, अन्यथा वे अपना कदम आगे बढ़ा सकते हैं।
हाल के लोक सभा चुनाव में पराजय के बाद हुड्डा के लिए आवश्यक हो गया है कि अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित करें। विधानसभा चुनाव इस परिप्रेक्ष्य में उन्हें एक मौका प्रदान करता है। पार्टी की कमान उनके हाथ में न होगी तो उनकी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति भी नहीं हो सकेगी। दूसरी ओर कांग्रेस नेतृत्व भी परखना चाहेगा कि हुड्डा में अब कितनी ताकत बची है। हुड्डा नई पार्टी बनाते हैं, तो निश्चित ही कांग्रेस को हरियाणा में नुकसान होगा।
हरियाणा तो बानगी मात्र है, कई राज्यों में पार्टी में गुटबाजी व्याप्त है। मौजूदा संकट के दौर में कांग्रेस नेतृत्व को इससे सूझ-बूझ से निपटना होगा। मगर संगठन के साथ-साथ उसे नीतिगत पहलू पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। कांग्रेस ने समुचित नीति अपना ली तो संगठन की कमजोरी ज्यादा मायने नहीं रखेगी। उसे आर्थिक ही नहीं, सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं पर भी अपनी राय सुस्थिर करनी होगी, जहां वह देशकाल की बदलती परिस्थितियों में तालमेल नहीं बिठा पा रही है। हुड्डा ने अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन कर इसका संदेश दे दिया है।
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