भारत की नैतिक जीत
कुलभूषण जाधव मामले पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला भारत की कानूनी और राजनयिक जीत के रूप में सामने आया।
भारत की नैतिक जीत |
न्यायालय ने पाकिस्तान को वियना संधि के उल्लंघन का दोषी मानते हुए उससे कहा है कि वह जाधव के मौत की सजा की समीक्षा व उस पर पुनर्विचार करे। यानी 2016 से जासूसी के आरोप में पाकिस्तानी जेल में बंद जाधव की मौत की सजा पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा लगाई गई रोक बरकरार रहेगी। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि जाधव की मौत की सजा की प्रभावी समीक्षा हो सके। साथ ही उसने जाधव तक भारत की राजनयिक पहुंच दिए जाने की मांग को भी स्वीकार कर लिया।
अंतरराष्ट्रीय आलोचना के मद्देनजर पाकिस्तान जाधव को फांसी देने का खतरा मोल नहीं ले सकता, लेकिन वह उसे रिहा करने के लिए बाध्य भी नहीं है। दरअसल, न्यायालय ने जाधव की रिहाई की भारत की अपील को खारिज कर दिया। इस फैसले के बाद भी जाधव को पाकिस्तान की जेल में रहना होगा। लेकिन एक बात तय हो गई है कि अब जाधव की सकुशल रिहाई के लिए पाकिस्तान की कोर्ट में भारत जाधव की मदद कर सकेगा। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान में किस प्रकार जाधव की मौत की सजा की समीक्षा की जाएगी?
अगर आगे भी पाकिस्तान में निष्पक्ष एवं पारदर्शी तरीके से जाधव के मसले पर विचार नहीं हुआ तो? अब तक इस मामले में पाक का आचरण आस्त करने वाला नहीं लगता। इस मसले पर वह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में नहीं जाना चाहता था, तो वह अकारण नहीं था। उसे अहसास था कि मामला उसके पक्ष में नहीं है। वियना संधि के अनुसार पाकिस्तान को जासूसी के आरोप में उसके जेल में बंद जाधव के बारे में तत्काल भारत को सूचित करना चाहिए था, मगर उसने करीब तीन सप्ताह बाद भारत को सूचित किया।
सवाल उठता है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की भावना के अनुरूप कार्य नहीं करता है, तो भारत के सामने क्या विकल्प हैं? भारत को राजनयिक सक्रियता बनाए रखनी होगी, ताकि जरूरत पड़ने पर उसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की प्रभावी पहल की जा सके। पाकिस्तान की तरफ से जिस प्रकार की प्रतिक्रिया आ रही है, वह कोई उत्साहजनक नहीं है। कोई आश्चर्य नहीं कि जाधव की आड़ में पाकिस्तान सौदेबाजी की राजनीति करने लगे। लेकिन पाकिस्तान के सामने समस्या यह है कि अभी अंतरराष्ट्रीय जनमत उसके पक्ष में नहीं है।
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