जमीन पर खूनी जंग
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के उभ्भा गांव में जमीन विवाद को लेकर हुई मौत की घटनाएं भयभीत और अचंभित करती हैं।
जमीन पर खूनी जंग |
आखिर किसी कानून के राज में ऐसा कैसे संभव है कि कुछ लोगों का समूह इस तरह हथियार लेकर विवादित जमीन जोतने पहुंचे और विरोध करने वालों पर जानलेवा हमला कर दे, अंधाधुंध गोलियां बरसा दे।
इस प्रकार का दृश्य सिनेमा में अवश्य दिखता था। जमीन विवाद हमारे देश में कहां नहीं है, पर उसके समाधान का तरीका कोई ऐसे अपना सकता है; कम-से-कम कानून के राज में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। हालांकि यह अजीब वाकया है, जिसमें जमीन पर कब्जा करने वालों के साथ भी भारी संख्या में लोग हैं। जो कुछ सामने आया है उसके अनुसार ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर के नाम 112 बीघा जमीन की रजिस्ट्री एक सोसायटी ने की, जिसके पास वर्षो से छह सौ बीघा जमीन है।
अनुसूचित जनजाति के लोगों का कहना है कि वे सब लंबे समय से उन जमीनों पर खेतीबारी करते आ रहे थे, इसलिए इसका विरोध किया गया। स्थानीय स्तर पर विरोध के साथ न्यायालयी लड़ाई भी आरंभ हुई। कलक्टर न्यायालय से मामला खारिज होने के बाद ये लोग कमिश्नर के न्यायालय में अपील करने जा रहे थे। ग्राम प्रधान भारी संख्या में ट्रैक्टर और हथियारबंद लोगों के साथ जमीन जोतने आ गया। इसी में विरोध हुआ और फिर यह भयानक घटना। यह बात समझ से परे है कि जब जमीन का विवाद चल रहा था तो स्थानीय प्रशासन ने कोई कदम कैसे नहीं उठाया?
जब इतनी संख्या में लोग किसी के नाम होने का विरोध और समर्थन कर रहे हैं तो इसमें हिंसक टकराव की संभावना हर क्षण बनी हुई थी। ग्राम प्रधान रहने वाले व्यक्ति को पता होना चाहिए कि अगर आपको जमीन पर डिग्री मिल गई है और कब्जा नहीं हो रहा तो फिर पुलिस प्रशासन से मदद लेने की कोशिश की जाती है। पता नहीं उसने ऐसी कोशिश की या नहीं।
जमीन विवाद में न्यायालय को पता होता है कि कब्जा किसका है। तो अगर कलक्टर न्यायालय ने फैसला गुर्जर के पक्ष में दिया तो उन्होंने इसके संबंध में कोई व्यवस्था दी या नहीं, यह देखना होगा। किंतु कोई व्यक्ति इतना दुस्साहस कैसे कर सकता है कि वह हथियार की बदौलत जमीन पर कब्जा करे और विरोध होने पर गोलियां चला दे! जिनके परिजन चले गए या जो जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं, उनकी त्रासदी की जिम्मवारी किसकी है?
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