जल-चेतना का काल
देश में सुखाड़ की स्थिति से निपटने के लिए जल को जनचेतना का विषय बनाने पर केंद्रीय मंत्री का जोर देना बिल्कुल सही विचार है।
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मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी ‘जल शक्ति अभियान’ की शुरुआत के मौके पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत ने दो टूक कहा कि देश पर आसन्न जल संकट से निपटने की जिम्मेदारी जितनी सरकार की है, उतनी जनता की भी है। और जनता को इस अभियान से जोड़कर ही इस समस्या पर जीत हासिल की जा सकती है। जाहिर तौर पर देश के अधिकांश हिस्सों खासकर दक्षिण भारत, पश्चिम भारत और उत्तर भारत के कई शहर पानी के अभूतपूर्व संकट से दो-चार हैं। पानी के इस्तेमाल और अपने बर्तनों में भरने के जिस तरह के दृश्य हम देखते हैं, उससे पानी को लेकर आने वाले समय में हालात और कितने दुरूह होंगे, इसकी कल्पना से सिहरन होती है। ठीक है कि जनता को जल के उचित इस्तेमाल के लिए तैयार करने और उन्हें सही मार्गदर्शन देने से इस चिंता को पाटा जा सकता है, मगर सरकार को भी कई स्तर पर पानी के बेजा इस्तेमाल और ऊंची बिल्डिगों के लिए पहले से बने नियमों को सख्ती से लागू कराने के लिए कमर कसनी होगी। और यह उतना आसान नहीं है, जितनी आसानी से मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में स्वच्छता अभियान को जन-जन तक पहुंचाकर उसे सफल बना दिया। नियम है कि सरकार से टोकन राशि पर मिली जमीन पर बने स्कूल, अस्पताल और अन्य बड़ी इमारतों को जल संचयन की ठोस परिकल्पना अमल में लानी होगी।
मगर ईमानदारी से इसे कितने स्कूल, अस्पताल और बड़े भवन के मालिक अमल में लाते हैं, यह सबको पता है। इस बात में कोई दो-राय नहीं कि जल संकट राष्ट्रीय चिंता का विषय है। और सभी को मिलकर इसका हल निकालना होगा। ‘पानी बनाया नहीं जा सकता है, बचाया जा सकता है’, सो जल का उपयोग समझदारी के साथ कैसे और किस रूप में किया जाए, इसमें सरकार और पानी के मसले पर काम कर रही एजेंसी और विशेषज्ञों की मदद ली जा सकती है। हो सके तो स्कूल लेवल से ही पानी के महत्त्व को बताने वाले पाठ्यक्रम शामिल किए जाएं, हर नागरिक को कम-से-कम एक पेड़ लगाने का नियम आवश्यक किया जाए। कुल मिलाकर जल संकट से फिलवक्त मुंह चुराने का नहीं बल्कि कार्यस्तर पर डटकर मुकाबला करने का समय है।
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