जैसे भी जल बचाएं

Last Updated 02 Jul 2019 05:34:33 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल के पहले ‘मन की बात’ कार्यक्रम में वैसे तो कई महत्त्वपूर्ण बातें कीं, लेकिन जल संकट और उससे निपटने के लिए काम करने का आह्वान उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था।


जैसे भी जल बचाएं

वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी के पूरे वक्तव्य से साफ है कि वह जल बचाओ को एक आंदोलन का रूप देना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छता आंदोलन की तरह जल संरक्षण आंदोलन चलाया जाए। साफ है कि आने वाले समय में ‘जल बचाओ, देश बचाओ’ का उनका आह्वान एक बड़ा नारा बनेगा।

वैसे तो दुनिया भर के विशेषज्ञ लंबे समय से जल संकट के खतरे की ओर ध्यान आकर्षित कर रहे थे। भारत में भी सरकारी, गैर-सरकारी स्तर पर जल बचाने और पुराने जल स्रोतों को जिंदा करने के अनेक अभियान चले हैं। किंतु सामूहिक रूप से जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों के हम भारतीयों ने जल की कीमत नहीं समझी है। अब जब भूजल का स्तर नीचे चला गया, पुराने कुंए सूख गए, पुराने हैंडपंप बेकार होने लगे, हैंडपंपों के पाइप को पहले की तुलना में ज्यादा से ज्यादा नीचे ले जाना पड़ रहा है तो जल का थोड़ा-बहुत महत्त्व समझ में आ रहा है। हालांकि अभी भी जल को लेकर उस स्तर की जागरूकता एवं सतर्कता नहीं है, जैसी होनी चाहिए।

इसमें प्रधानमंत्री की अपील तथा आह्वान का जितना भी असर होगा, वह हमारे लिए और भावी पीढ़ी की चुनौतियों को कम कर सकेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ‘मन की बात’ के पहले ही ग्राम प्रधानों, सरपंचों को पत्र लिख कर सबसे जल संरक्षण पर काम करने का अनुरोध किया था। लेकिन इसका असर हुआ या नहीं हुआ, इस बारे में अभी से कुछ कहना कठिन है, पर यह यकीनन एक अच्छी पहल है। प्रधानमंत्री मोदी का आग्रह है कि जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों को साझा किया जाए ताकि उसका डाटा बैंक  बनाकर अन्य क्षेत्रों को भी ऐसा करने को प्रेरित किया जा सके।

प्रधानमंत्री ने जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का डाटा बैंक बनाने की भी बात कही। वास्तव में देश भर में अभी भी जल संरक्षण के काफी पारंपरिक तरीके शेष हैं। उनको बचाए रखना तथा उस तरह के तरीके अपना कर दूसरे क्षेत्रों में भी जल संरक्षण का चरित्र पैदा करना समय की मांग और हमारा कर्त्तव्य है। इसके साथ जिन क्षेत्रों में जल संकट पैदा हो चुका है, वहां कैसे प्रकृति की मदद से संरक्षण के उपाय अपनाए जाएं, यह भी समय की मांग है। यह केवल सरकार के बूते संभव नहीं है। इसमें समाज के सभी वगरे को आगे आना चाहिए।



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