निशाने पर अधिकारी
इंदौर के बाद अब तेलंगाना में सरकारी अफसर की पिटाई की खबर वाकई परेशान और चिंतित करने वाली है।
![]() निशाने पर अधिकारी |
तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के समर्थकों ने एक गांव में पौधरोपण के लिए गई वन विभाग की टीम और पुलिस पर हमला बोल दिया। हमले में फारेस्ट रेंजर सी अनीता घायल हो गई। आरोप है कि टीआरएस विधायक के भाई ने समर्थकों के साथ सरकारी कर्मचारियों और अफसरों पर हमला बोला। इससे पहले इंदौर में इसी तरह की वारदात ने कइयों का ध्यान खींचा था। दुखद बात यह है कि जेल से रिहा होने के बाद आकाश विजयवर्गीय का स्वागत पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने किसी हीरो की तरह किया। पार्टी कार्यालय में जश्न मनी। क्या इस तरह के कृत्य से सरकारी अधिकारियों के मनोबल पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा? पार्टी और सरकार को इस बारे में संजीदगी के साथ विचार करने की जरूरत है। पिछले हफ्ते पूरे देश ने देखा कि डॉक्टरों के साथ मारपीट करने का अंजाम क्या होता है। देशव्यापी हड़ताल से स्वास्थ्य सेवाएं किस कदर चरमरा गई, यह जगजाहिर है। सो, ऐसी नौबत न आए इसलिए जनप्रतिनिधियों को खास सतर्कता बरतनी होगी। किसी भी अधिकारी को सरेआम पीटना जनता के अधिकार के लिए लड़ने की आड़ में सिर्फ-और-सिर्फ गुंडागर्दी कही जा सकती है।
अधिकारियों को अगर ऐसे ही जलील किया जाता रहेगा तो तंत्र कैसे काम करेगा? तब तो कोई भी विधायक, सांसद, नेता या उसका रिश्तेदार काम न होने की थोथी दलील देकर अफसरों को पीट देगा। इंदौर और तेलंगाना की घटना बताती है कि नेताओं के काम करने का तरीका कितना सही है? ‘करेला ऊपर से नीम चढ़ा’ ये कि ऐसे बल्लामार नेताओं की र्भत्सना के बजाय उसका सम्मान किया जाता है, उसके आचरण को जायज ठहराया जाता है, पार्टी कार्यालय में रिहाई की खुशी में मतांध कार्यकर्ता हवाई फायर करते हैं और घर की महिलाएं उसकी आरती उतारती हैं। इससे अफसर हतोत्साहित नहीं होंगे क्या? कल को कोई भी अफसर इस नाते काम करने से कतराएगा कि उसकी पिटाई न हो जाए या उसे भीड़ के सामने बेइज्जत न कर दिया जाए। सरकार को ऐसे मामलों को यथाशीघ्र निपटाने का फामरूला लाना होगा वरना कल के दिन कोई भी खादी वाला ‘आवेदन व निवेदन’ के बदले ‘दनादन’ करने लग जाएगा।
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