1983 में जिमी, 2011 में माही

Last Updated 03 Apr 2011 05:22:02 PM IST

वर्ष 1983 के मोहिंदर अमरनाथ और 2011 में महेंद्र सिंह धोनी के बीच आखिर क्या समानता है ?

जीत के बाद युवी और धोनी गले मिले

आज से ठीक 28 साल पहले 25 जून 1983 को लार्डस में मोहिंदर अमरनाथ भारतीय जीत के नायक बने थे और अब दो अप्रैल 2011 को महेंद्र सिंह धोनी ने यही कमाल दिखाकर भारत की विश्व कप में दोनों खिताबी जीत में इस नाम को खास बना दिया.

अमरनाथ ने 1983 विश्व कप फाइनल में 26 रन बनाये और 12 रन देकर तीन विकेट लिये जिसके लिये उन्हें मैन आफ द मैच चुना गया. अब धोनी ने एक कैच और एक रन आउट करने के अलावा नाबाद 91 रन की पारी खेली जिसके लिये वह मैन आफ द मैच बने.

धोनी अब टीम के कप्तान हैं जबकि अमरनाथ तब टीम के उप कप्तान थे. यह भी दिलचस्प रहा कि 25 जून 1983 को भी शनिवार था और दो अप्रैल 2011 को भी शनिवार ही था.

भारतीय टीम यदि 1983 में चैंपियन बनी तो उसकी खास बात यह रही कि उसके एक गेंदबाज ने बेहतरीन प्रदर्शन किया तो एक खिलाड़ी ने आलराउंड खेल में अपना दम दिखाया. तब तेज गेंदबाज रोजर बिन्नी ने टूर्नामेंट में सर्वाधिक 18 विकेट लिये थे जबकि अमरनाथ ने बल्लेबाजी और गेंदबाजी में कमाल दिखाकर 237 रन बनाने के अलावा आठ विकेट लिये थे.

अब 2011 में तेज गेंदबाज जहीर खान ने गेंदबाजी के अगुआ की भूमिका अच्छी तरह से निभायी और टूर्नामेंट में पाकिस्तान के शाहिद अफरीदी के साथ संयुक्त रूप से सर्वाधिक 21 विकेट लिये. युवराज ने आलराउंड प्रदर्शन किया तथा 362 रन बनाने के साथ ही 15 विकेट भी लिये. दिलचस्प बात यह रही कि मोहिंदर और युवराज की टीम में मुख्य भूमिका बल्लेबाज की रही है.

इंग्लैंड में 28 साल पहले खेले गये टूर्नामेंट का सर्वाधिक व्यक्तिगत स्कोर 175 रन था और अब भारतीय उपमहाद्वीप में खेले गये टूर्नामेंट में सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत पारी 175 रन की खेली गयी और संयोग से ये दोनों बल्लेबाज भारत के थे. 1983 में कपिल देव ने जिम्बाब्वे के खिलाफ नाबाद 175 रन तो 2011 में वीरेंद्र सहवाग ने बांग्लादेश के खिलाफ 175 रन बनाये.

गेंदबाजी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की बात करें तो तब भी भारत के एक गेंदबाज कपिल देव ने एक मैच में पांच विकेट चटकाये थे जबकि अब युवराज ने यही प्रदर्शन दोहराया. यह भी संयोग है कि कपिल ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ जिस मैच में 43 रन देकर पांच विकेट लिये उसी में टीम की तरफ से सर्वाधिक 40 रन भी बनाये जबकि युवराज ने आयरलैंड के खिलाफ 31 रन देकर पांच विकेट लेने के अलावा सर्वाधिक नाबाद 50 रन बनाये.

भारत ने तब फाइनल में वेस्टइंडीज के सामने लक्ष्य रखा था जबकि मुंबई में उसने लक्ष्य का पीछा किया. वह लक्ष्य का पीछा करके विश्व चैंपियन बनने वाली केवल तीसरी टीम है. इससे पहले श्रीलंका ने 1996 में और आस्ट्रेलिया ने 1999 में लक्ष्य हासिल करके खिताब जीता था.

भारत ने इसके अलावा अपनी सरजमीं पर खिताब नहीं जीत पाने का मिथक भी तोड़ा. यह पहला अवसर है जबकि कोई टीम अपनी धरती पर फाइनल खेलकर चैंपियन बनी. यही नहीं अब तक फाइनल में जिस टीम के खिलाड़ी ने शतक जड़ा वह चैंपियन बनी लेकिन भारतीयों ने शनिवार को महेला जयवर्धने की नाबाद 103 रन की पारी को बेकार कर दिया था.

इससे पहले 1975 में वेस्टइंडीज के क्लाइव लायड (नाबाद 102:) 1979 में वेस्टइंडीज के विवियन रिचर्डस (नाबाद 138), 1996 में अरविंद डिसिल्वा (नाबाद 107), 2003 में आस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग (नाबाद 140) और 2007 में आस्ट्रेलिया के एडम गिलक्रिस्ट (149 रन) ने फाइनल में शतक जड़े थे और तब उनकी टीम चैंपियन बनी थी.



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