चूना पत्थर के पहाड़ हैं देहरादून में बादल फटने का कारण, भूवैज्ञानिकों ने किया खुलासा
19 अगस्त को देहरादून के सरखेत में बादल फटने के बाद मची तबाही के जख्म अब तक हरे हैं।
![]() बादल फटना (फाइल फोटो) |
यहां बादल फटने से पहले जमकर आकाशीय बिजली गिरी थी। अब क्षेत्र में मची तबाही के पीछे उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने चूना पत्थर के पहाड़ों को बड़ी वजह बताया है। यूसैक के निदेशक व भूविज्ञानी प्रो. एमपीएस बिष्ट ने वातावरण में होने वाले आयोनाइजेशन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि 'चूना पत्थर के पहाड़ आकाशीय बिजली को आकर्षित कर रहे हैं'।
बता दें कि सरखेत में हर मानसून सीजन में सामान्य से अधिक बिजली गिरने की घटनाएं सामने आती हैं। इससे इस संभावना को बल मिलता है कि यहां के चूना पत्थर के पहाड़ वातावरण में आयोनाइजेशन की प्रक्रिया के माध्यम से आकाशीय बिजली को आकर्षित करते हैं।
प्रो. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक वातावरण में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन है और 21 प्रतिशत आक्सीजन। वातावरण में नाइट्रोजन (एन2) एटम्स के रूप में होता है। वर्षा के साथ ऑक्सीजन जब नाइट्रोजन के संपर्क में आती है तो यह उसके एटम्स को तोड़ देता है। इसके बाद नाइट्रेट (एन2ड) बनता है, जिससे बड़े स्तर पर ऋणात्मक ऊर्जा निकलती है और जब यह ऊर्जा धनात्मक आयन के संपर्क में आती है तो अथिर्ंग होती है। जहां भी अथिर्ंग पैदा होगी, बिजली वहीं सर्वाधिक गिरेगी।
दरअसल चूना पत्थर व सिलिका जैसे पहाड़ भी अपने विशिष्ट रासायनिक गुणों के कारण बड़े स्तर पर धनात्मक ऊर्जा पैदा करते हैं। यही कारण है कि आयोनाइजेशन की इस प्रक्रिया में ऐसे क्षेत्रों में बिजली गिरने की घटनाएं सर्वाधिक होती हैं। बिजली गिरने के चलते चट्टानें चटकने लगती हैं। भारी वर्षा व बादल फटने की घटनाओं के बीच यह नुकसान को बढ़ा देती हैं।
यूसैक के निदेशक प्रो. बिष्ट के मुताबिक, वर्ष 1991 में सेवा के शुरूआती दौर में जब वह वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में कार्यरत थे, तब उन्होंने पीपलकोटी से हेलंग (अपर अलकनंदा कैचमेंट) के बीच भूस्खलन की घटनाओं पर अध्ययन किया था। उस अध्ययन में भी इस बात का जिक्र किया था कि चूना पत्थर की चट्टानों वाले क्षेत्रों में बिजली गिरने की अधिक घटनाएं हो रही हैं। सरखेत और भैंसवाड़ा क्षेत्र भी भूस्खलन प्रभावित रहता है। वहीं, मसूरी के नीचे की पहाड़ियों पर भी बड़े भूस्खलन जोन हैं। क्योंकि, चूना पत्थर वाले पहाड़ों में बिजली गिरने की अधिक घटनाओं के शुरूआती निष्कर्ष के पीछे भी वैज्ञानिक आधार मौजूद हैं, इसलिए इस दिशा में गहन अध्ययन की जरूरत बढ़ गई है।
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