जान जोखिम में डाल मजदूरों ने पकड़ी घर की राह
पैदल, ट्रक, लोडर और ऑटो के सहारे जिंदगी जोखिम में डालकर अपनी मंजिल और अपने गांव पर पहुंचने की जद्दोजहद में प्रवासी मजदूर लगे हैं।
![]() प्रवासी मजदूर |
राजधानी की सड़कों पर प्रवासियों की भीड़ उमड़ने का सिलसिला जारी है। सुबह से ही कानपुर रोड, ककोरी के एक्सप्रेसवे, फैजाबाद रोड पर मजदूरों की लम्बी-लम्बी टुकड़ियां देखने को मिल रही हैं। इस दौरान प्रवासियों के चेहरे पर शारीरिक थकान नहीं, बल्कि घर की दूरी कम करने की आशा झलक रही थी।
बाराबंकी रोड पर मिले हरदोई के रहने वाले शिव सिंह महाराष्ट्र के मुंबई में मजदूरी करके अपना जीवन गुजार रहे थे कि अचानक कोरोना के शोर ने उनके काम को अपने चपेट में ले लिया। वह पैदल ही अपने परिवार के साथ गांव को निकल पड़े। वह पत्नी और दो बच्चों के साथ निकल लिए हैं। रास्ते में अगर कोई दयालू मिल गया तो कुछ पेट भर जाता है नहीं तो पानी और पारले बिस्कुट पर जिंदगी चल रही है।
उनसे जब पूछा गया कि क्या महाराष्ट्र सरकार ने कोई व्यवस्था की है, तो इस पर उन्होंने कहा, "अगर व्यवस्था होती तो हम पैदल क्यों आते। पैसे भी खत्म हो गये और इसलिए परेशानी भी बढ़ रही थी।"
कोरोना में हुई पूर्णबंदी के कारण हुई पैसे की समस्या महराजगंज के दिनेश प्रजापति, रामकुमार प्रदुम्न, भोलू के चेहरे पर साफ देखने को मिली। यह सब पुणे में पेन्टर का काम करते थे। महाबंदी में सिर्फ खाने के पैसे मिलते थे। लेकिन जिंदगी जाने का डर बना रहता था। इसी कारण पैदल ही वहां से चल दिये। रास्ते जो भी साधन मिला उसने उन्हें लखनऊ छोड़ दिया है। दिनेश ने कहा, "हमारे साथ 16 लोगों की टीम है। सब महराजगंज जाएंगे। वहां पर अपनी जांच कराकर अगर क्वारंटीन करने को कहेंगे तो हो जाएंगे। वरना घर पर ही एकांतवास पकड़ लेंगे। स्थिति ठीक होने पर वापस जाने के बारे में बाद में सोचेंगे।"
महाराष्ट्र में रोजनदारी मजदूरी करने वाले नरेश ने बताया कि वह दो माह से बिना पैसे के आभाव में अपनी जिंदगी जी रहे थे। लेकिन जब कुछ नहीं सूझा तो पैदल ही गांव के लिए निकल लिए। रास्ते में कुछ जगह तो खाने पीने को मिल रहा था। लेकिन कुछ जगह पानी से ही काम चलाना पड़ा। एक सप्ताह में लखनऊ पहुंचे हैं। आगे पता नहीं कब तक पहुंचे।
बहराइच के जाकिर लोडर से 4 दिन में लखनऊ पहुंचे हैं। मुंबई में कबाड़ का काम करते थे। लेकिन महाबंदी के कारण खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इसी कारण इन लोगों ने लोडर करके घर जाने का निर्णय लिया है। अभी दो दिन का सफर और तय करना है।
बिहार के सीतामढ़ी के उमेश ऑटो से लखनऊ तक पहुंचे। पैसे के अभाव में मकान मालिक परेशान करने लगा उन्होंने सीधे अपने घर की राह पकड़ ली। दो ऑटो से 6 लोग आए हैं। बोरवली में रहते थे। काम धंधा भी बंद था।
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