मेरे मन का वही रिश्ता है मस्जिद और शिवाले से..

Last Updated 02 Dec 2019 02:43:21 AM IST

शायर डा. सागर आजमी की स्मृति में शनिवार को बाराबंकी में अखिल भारतीय मुशायरा एवं कवि सम्मेलन आयोजित किया गया।


मंच पर आसीन प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना, कवयित्री भुवन मोहिनी, शायर नदीम शाह, आदिल रशीद, इस्माइल राज।

सम्मेलन का आगाज सहारा न्यूज नेटवर्क के सीईओ एंड एडिटर इन चीफ श्री उपेन्द्र राय, पूर्व केन्द्रीय मंत्री मोहसिना किदवई व प्रदेश के पूर्व मंत्री अरविन्द सिंह गोप आदि ने शमा रोशन कर किया। वरिष्ठ शायर मंसूर उस्मानी के संचालन में मुशायरा एवं कवि सम्मेलन परवान चढ़ा।

बीमारी के बाद भी पधारे अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शायर मुनव्वर राना ने - ‘इस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर, ये पेड़ सिर्फ बीच में आने से कट गया’ को सुनाकर पर्यावरण का संदेश दिया। उन्होंने अन्य रचनाएं भी सुनायीं। मुनव्वर राना की तबीयत ठीक नहीं थी। इसके कारण वह ज्यादा देर तक कविताएं सुना नहीं पाये। कुछ देर बाद वह चले गये। हालांकि, लोग उनको सुनना चाहते थे।

अंजुम रहबर ने पढ़ा कि ‘हम से फिर प्यार का इजहार किया है तुमने ये तमाशा तो कई बार किया है तुमने।’ मंसूर उस्मानी का शेर था, ‘इस शहर में चलती हैं हवा और तरह की, जुर्म और तरह के हैं और सजा और तरह की।’ गीतकार विष्णु सक्सेना की रचना थी, ‘यह मानता हूं मैं दौलत नहीं कमा पाया मगर तुम्हारा हर एक गम खरीद सकता हूं।’ दिल्ली के शायर आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि ‘यह सोचना गलत है कि तुम पर नजर नहीं, मशरूफ हम बहुत हैं मगर बेखबर नहीं।’ इंदौर की भुवन मोहनी ने पढ़ा, ‘मेरे मन का वही रिश्ता है मस्जिद और शिवाले से जो शाही खुशबू आती है फकीरों के निवालों से।’

दिल्ली से आये अज्म शाकरी ने भी अपनी शायरी के जरिये लोगों को लुभाया। उन्होंने पढ़ा कि ‘रोने वालों इनको दामन में रख लो, वरना आंसू आवारा हो जाते हैं।’ देवबंद के डा. नदीम शाह ने अपने जज्बातों को यूं पेश किया, ‘जाने किसका हक दबाकर घर में दौलत लाये हो और इस पर यह सितम इसमें भी बरकत चाहिए।’

महंगाई पर कटाक्ष करते हुए उस्मान मीनाई ने पढ़ा कि ‘ पहले तो प्याज काटकर आते थे आंख में आंसू, अब तो इसे खरीद कर आंख से आंसू निकल जाते हैं।’ आदिल रशीद की नज्म थी, ‘दुनिया की बात छोड़िये अपना नहीं हुआ उसको किसी से इश्क दोबारा नहीं हुआ।’ महाराष्ट्र से आये युवा शायर इस्माइल राज ने कई गजलें पेश कीं। उनका यह शेर ‘यहां तो लड़कियां अच्छा सा घर भी चाहती हैं, हमारे पास तो अच्छा लिबास भी नहीं है।’ काफी पसंद किया गया। शहबाज तालिब ने कहा कि खाक तो खाक है पत्थर से निकल जाएंगे, हम नये पेड़ हैं अन्दर से निकल जाएंगे। अंत में साझी विरासत के संयोजक परवेज अहमद ने अतिथियों और श्रोताओं का आभार जताया।

 

सहारा न्यूज ब्यूरो
लखनऊ/बाराबंकी


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