उप्र के शिक्षामित्रों को आंशिक राहत, नहीं जाएगी नौकरी
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक लाख 78 हजार शिक्षा मित्रों को आंशिक राहत प्रदान की है.
उप्र के शिक्षामित्रों को आंशिक राहत |
सहायक अध्यापक के रूप में उनके समायोजन को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि प्राथमिक शिक्षकों की अगली दो भर्तियों में उनके आवेदन पर विचार किया जाए.
लेकिन, साथ में स्पष्ट किया कि शिक्षा मित्र के पास न्यूनतम शिक्षा होनी चाहिए. समायोजन से पहले वह शिक्षा मित्र के रूप में कार्य कर रहे थे, यदि राज्य सरकार चाहे तो शिक्षा मित्र के रूप में उनकी सेवाएं जारी रख सकती है.
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और उदय उमेश ललित की बेंच ने उत्तर-प्रदेश के शिक्षा मित्रों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर कई याचिकाओं का निपटारा किया. कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षा मित्रों की नियुक्ति अध्यापक के रूप में नहीं की गई थी.
शिक्षा का अधिकार कानून के अमल में आने पर छह से 14 साल के बच्चों को स्कूल भेजना अनिवार्य कर दिया गया था. राज्य सरकार ने तात्कालिक प्रबंध के तौर पर उनकी भर्ती की थी. न्यूनतम योग्यता इंटरमीडिएट रखी गई थी. ग्राम स्तर पर भी इनकी नियुक्तियां की गई थी. शिक्षा मित्र की भूमिका सामुदायिक सेवा के रूप में थी. उन्हें कभी भी अध्यापक का दर्जा नहीं दिया गया.
कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को जायज ठहराते हुए कहा कि 23 अगस्त, 2010 की अधिसूचना के बाद न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के बिना अध्यापक की नियुक्ति नहीं हो सकती. नियमों में शिथिलता कुछ समय के लिए दी जा सकती है.
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