कांग्रेस चिंतन शिविर : जो गरजते थे वो बरसे नहीं
बड़ी चर्चा थी कि चिंतन शिविर में कई वरिष्ठ नेता अंतरात्मा की आवाज पर बोलेंगे लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं हुआ।
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राज्यसभा के टिकट जल्दी ही फाइनल होने हैं इसलिए असंतुष्ट कहे जाने वाले जी23 के नेता गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और विवेक तनखा भी वैसा कुछ नहीं बोले जैसा वह बाहर बोलते रहे हैं। जी23 के नेता पूर्णकालिक और अधिक सक्रिय नेतृत्व की मांग कर रहे थे। उन्होंने कार्यसमिति के चुनाव कराने की भी मांग रखी थी।
सीपी जोशी सरीखे कुछ वरिष्ठ नेताओं के पास चिंतन शिविर में राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने की बात कहने के सिवा कुछ नहीं था। अपने को अभी भी राहुल का करीबी दिखाने के लिए वह यह भी कह गए कि राहुल के मना करने से क्या होता है पार्टी तय करेगी कि वह अध्यक्ष होंगे। कांग्रेस के चिंतन शिविर में जिन छह विषयों पर अलग-अलग समिति बनाकर दो दिन तक चर्चा की गई उसमें सबसे ज्यादा और लंबी चर्चा राजनीतिक समिति में ही हुई। सबसे ज्यादा वरिष्ठ नेता इस समिति में ही रखे गए थे। अधिक चर्चा इस बात की हुई कि मोदीमय भाजपा के ध्रुवीकरण का मुकाबला कांग्रेस कैसे कर सकती है? ज्यादा नेता बोले ध्रुवीकरण की काट तलाशे बिना चुनाव नहीं जीत पाएंगे। ध्रुवीकरण की वजह से सारे चुनावी समीकरण गड़बड़ाने यानी जीत के पुराने फार्मूले के फेल हो जाने का काफी विलाप किया गया।
इस बैठक में इस बात की भी चर्चा हुई कि कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व, पुरानी धर्मनिरपेक्षता वाली सोच और सर्व धर्म समभाव में से कौन सा चेहरा लेकर 2024 के चुनाव में जाना चाहिए। ज्यादा नेता इस पक्ष में हैं कि कांग्रेस को तीसरा विकल्प चुनना चाहिए यानी कांग्रेस को सर्व धर्म समभाव वाला चेहरा लेकर ही जनता के बीच जाना चाहिए। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी सिर्फ एक मजहब या एक वर्ग की होकर नहीं चल सकती क्योंकि कांग्रेस से दूसरे वर्गों की भी अपेक्षाएं हैं जिनका उसने अब तक ख्याल रखा है।
बताया जा रहा है कि चिंतन शिविर में ज्ञानवापी मस्जिद का भी संदर्भ आया और इसकी भी बात हुई कि क्या कांग्रेस को भी समय-समय पर धार्मिंक आयोजनों में हिस्सा लेना चाहिए ? पिछले दिनों सॉफ्ट हिंदुत्व के मद्देनजर हनुमान जयंती के अवसर पर मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने जिला कांग्रेस को कार्यक्रम आयोजित करने के प्रदेश महासचिव के ज़रिए निर्देश जारी कराए थे। इस पर दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच अच्छी प्रतिक्रिया नहीं देखी गई थी। प्रदेश के संगठन महासचिव के सर्कुलर को भी उचित नहीं बताया गया था। चिंतन शिविर में संगठन में सुधार के नाम पर कई बड़े फैसले अवश्य लिए गए हैं लेकिन इन पर अमल आसान नहीं रहेगा।
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