विपक्षी एकता को मजबूत करने में, इसलिए ज्यादा रुचि नहीं ले रहे हैं शरद पवार!
महाराष्ट्र की राजनीती में कभी दबदबा रखने वाले शरद पवार अब थक गए हैं। अब ज्यादा बूढ़े हो गए हैं। शारीरिक और मानसिक रूप से निर्णय लेने में अब शायद अक्षम हो चुके हैं। कुछ महीनों पहले तक विपक्षी एकता को मजबूत करने की बात करने वाले शरद पवार अब अपने भतीजे अजीत पवार के सामने बेबस नजर आ रहे हैं। शरद पवार की मनोदशा को देखकर, कुछ दिनों से ऐसे ही कयास लगाए जा रहे हैं।
![]() राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार |
उनकी ऐसी स्थिति देखकर यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि शायद पवार अपनी पार्टी के उत्तराधिकारी को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गए हैं। तो क्या मान लेना चाहिए कि अब एनसीपी का हश्र भी शिवसेना जैसा होने वाला है। बाला साहेब ठाकरे की मौत के बाद जैसा हुआ था। शिव सेना की विरासत को लेकर उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के बीच जो मतभेद उत्पन्न हुए थे ,कुछ वैसा ही अब एनसीपी में होने वाला है। कुछ इसी तरह की चर्चा आज महाराष्ट्र की राजनीति में हो रही है।
शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर दस 10 जून 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था। अपनी मेहनत और सूझ बुझ से उन्होंने अपनी पार्टी को क्षेत्रीय से राष्ट्रीय पार्टी बना लिया था। हालांकि आज एक बार फिर उनकी पार्टी क्षेत्रीय पार्टी बनकर रह गई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से राष्ट्रिय का दर्जा छीन गया है। अभी कुछ दिनों से महाराष्ट्र में सरकार को लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई है। ऐसा माना जा रहा है कि उनके भतीजे अजीत पवार पार्टी से बगावत कर, बहुत जल्दी ही भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना सकते हैं। अजीत पवार कई बार इस बात के संकेत दे चुके हैं कि वह ना सिर्फ मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं बल्कि मौक़ा मिले तो 2024 से पहले ही मुख्यमंत्री बनने को तैयार हैं।
अजीत पवार के इस ब्यान से उनके परम मित्र और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने भले ही सहमति न जताई हो। संभव है कि अपनी राजनैतिक और गठबंधन की मजबूरी के चलते फडणवीस खुलकर कुछ नहीं कह पा रहे हों, लेकिन उनकी शारीरिक भाषा यह बताने के लिए पर्याप्त है की उनका भी समर्थन अजीत पवार को है। अब रही बात कि अगर अजीत पवार भाजपा के साथ जाते हैं तो उनके साथ एनसीपी के कितने विधायक जाएंगे, और ऐसा होने पर शरद पवार क्या करेंगे? शरद पवार के सामने सबसे बड़ी चिंता यही है। इसलिए वह विपक्षी एकता की बात भूलकर, इस समय अपने टूट रहे घर को बचाने के लिए ज्यादा चिंतित हैं।
शरद पवार इस समय 82 वर्ष के हो चुके हैं। बढ़ती उम्र और अपने गिरते हुए स्वास्थ को देखते हुए वह चाहते हैं कि उनके जीते जी उनकी पार्टी का कोई उत्तराधिकारी बन जाए। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? शरद पवार अगर अपनी बेटी को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हैं तो क्या अजीत पवार सहजता से स्वीकार कर लेंगे? क्या शरद पवार चाहेंगे कि उनकी पार्टी का उत्तराधिकारी अजीत पवार को बना दिया जाय? जिस समय बाला साहेब ठाकरे का देहांत हुआ था, उस समय यही स्थिति शिवसेना में उत्पन्न हुई थी। पार्टी के उत्तराधिकारी को लेकर बाल साहेब के बेटे और उनके भतीजे में जंग शुरू हो हुई थी। काफ़ी जद्दोजहद के बाद उद्धव ठाकरे ही शिवसेना के उत्तराधिकारी बन गए थे। उस निर्णय से नाराज, राज ठाकरे ने अपनी अलग पार्टी बना ली थी। कमोबेश यही स्थिति आज एनसीपी में है।
हालांकि शरद पवार की बेटी अपने चचेरे भाई अजीत पवार की तरह तेज तर्रार नहीं हैं। उनकी पार्टी के नेता शायद अजीत पवार पर ज्यादा भरोसा जताएंगे। संभव है कि अजीत पवार चालीस से ज्यादा विधायकों के साथ नई पार्टी बनाकर भाजपा के साथ गठबंधन कर लें। यानि कुल मिलाकर इस समय महाराष्ट्र में,अगर सबसे ज्यादा चिंतित और दुविधा में कोई नेता है तो वह हैं शरद पवार। ऐसे में मई का पहला सप्ताह महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने जा रहा है। महाराष्ट्र में दो स्थितियां बनती हुईं साफ़ दिखाई दे रही हैं। पहला एनसीपी का टूटना और दूसरा, महाराष्ट्र में वर्तमान शिंदे सरकार का जाना।
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