कोई खुशी से भीख नहीं मांगता

Last Updated 28 Jul 2021 09:00:39 AM IST

सड़क पर भिखारियों की लगातार बढ़ती संख्या पर लगाम लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति खुशी से भीख नहीं मांगता। वंचित लोगों के पास भीख मांगने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है।


सुप्रीम कोर्ट

देश में गरीबी है और गरीबी सामाजिक-आर्थिक कारणों से है। देश की सर्वोच्च अदालत भिक्षा पर कुलीन दृष्टिकोण नहीं अपना सकती।

जस्टिस धनंजय चंद्रचूड और मुकेश कुमार शाह की बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भिखारियों को सड़क तथा सार्वजनिक स्थानों से भीख मांगने से रोकने का अनुरोध किया गया है। साथ ही भिखारियों के टीकाकरण और पुनर्वास की भी मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने याची से दो टूक कहा कि अदालत भिक्षावृत्ति पर किसी तरह का अंकुश नहीं लगाना चाहती, लेकिन टीकाकरण तथा पुनर्वास पर जरूर ध्यान देगी। अदालत ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर भिखारियों और बेसहारा लोगों के पुनर्वास और टीकाकरण के लिए दायर जनहित याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि सड़कों पर भिखारियों को नहीं आने की इजाजत देने के मामले में वह कुलीन (एलीट) नजरिया नहीं अपनाएगा। अदालत ने कहा कि भिक्षावृत्ति एक सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक समस्या है और शिक्षा और रोजगार की कमी के कारण आजीविका की कुछ बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग पर सड़कों पर भीख मांगने पर मजबूर होते हैं। अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से कहा कि वह उस याचिका के एक हिस्से में किए गए उस आग्रह पर विचार नहीं करेगी जिसमें अधिकारियों को भिखारियों, आवारा और बेघर लोगों को सार्वजनिक स्थानों या यातायात चौक पर भीख मांगने से रोकने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। यह सरकार की सामाजिक कल्याण नीति का व्यापक मुद्दा है और शीर्ष अदालत यह नहीं कह सकती कि ऐसे लोगों को हमारी नजरों से दूर रखा जाना चाहिए।
 

एसएनबी
नई दिल्ली


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