नेहरू के कहने पर पाक के पहले हमले के वक्त भी सहायता के लिये आगे आये थे RSS के स्वयं सेवक: उमा भारती

Last Updated 14 Feb 2018 12:40:39 AM IST

केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा है कि आरएसएस के स्वयं सेवकों में देश के लिये मर मिटने की भावना भीतर तक भरी होती है इसलिये पाकिस्तानी सेना के देश पर पहले आक्रमण के दौरान संकट के वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर संघ के स्वयं सेवक जम्मू-कश्मीर में सहायता के लिये आगे आये थे.


केन्द्रीय मंत्री उमा भारती (file photo)

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के खबरों में आये बयान कि आरएसएस के स्वयं सेवक, सेना के सैनिकों से पहले तैयार सकते हैं, इस पर विपक्षी दलों की आलोचना के सवाल पर आज यहां उमा ने दावा करते हुए मीडिया से कहा, ‘‘जब पाकिस्तान ने देश में 1948-49  में हमला कर दिया था, तब नेहरू जी ने गुरू गोलवनकर जी को पत्र लिखकर संघ के स्वयं सेवकों की सहायता की मांग की थी. इस पर जम्मू और कश्मीर में आरएसएस के स्वयं सेवक सहायता करने गये थे.’’
उन्होंने कहा कि उस समय सेना के पास बहुत हाईटेक उपकरण नहीं थे कि तुरंत वहां पहुंच जायें क्योंकि ऐसा खतरा आयेगा ऐसा सोचा ही नहीं था.
उमा ने कहा कि तब उस समय नेहरू जी ने गुरू गोलवनकर जी को पत्र लिखकर संघ के स्वयं सेवकों की सहायता की मांग की थी. आरएसएस के स्वयं सेवक तब जम्मू और कश्मीर में सहायता करने गये थे.   

संघ प्रमुख के बयान पर कुछ कहने से इंकार करते हुए उमा ने कहा, ‘‘जब सरसंघचालक कोई बयान देते हैं और उनके बयान में प्रतिउत्तर या प्रतिसंवाद या पैनल डिस्कशन होते हैं, तो संघ की ओर से ही बयान आता है. हम लोग कोई नहीं बोलते हैं, क्योंकि वह हमारे परिवार के मुखिया हैं.’’ 
उन्होंने कहा कि संघ की सदस्यता का कोई फार्म नहीं भरना होता है. लोग इसमें आस्था और भावना से शामिल होते हैं. संघ के स्वयं सेवकों में देश के लिये मर मिटने का भाव अंदर तक बैठ जाता है.
विपक्षी दल के इस आरोप कि भागवत के बयान से सेना का अपमान हुआ, के सवाल पर केन्द्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘वह तो आप अपने से कुछ भी सोच लोगे.’’
उन्होंने सवाल किया कि जब लोग सेना को पत्थर मारते हैं. गालियां देते हैं. सेना के खिलाफ एफआईआर करते हैं. जेएनयू परिसर में सेना पर महिलाओं के साथ बलात्कार का आरोप लगाते हैं, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और यह कहना कि आरएसएस का स्वयं सेवक देश पर मर मिटेगा यह सेना का अपमान है. उन्होंने कहा, ‘‘यह सेना का अपमान नहीं है, सेना का अपमान वह है, जो जेएनयू परिसर में हुआ था.’’

भाषा


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