भारत में 45 वर्ष और उससे अधिक आयु के 14 प्रतिशत से अधिक लोग अवरोधक फेफड़ों की बीमारी से प्रभावित हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता टीम द्वारा किए गए विश्लेषण में यह जानकारी दी गई।

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इस टीम में मुंबई के अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्था के विशेषज्ञ भी शामिल हैं।
‘लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया’ (एलएएसआई) के तहत 31,000 से अधिक वयस्कों की ‘स्पिरोमेट्री’ जांच की गई। फेफड़ों की कार्यक्षमता जांचने के लिए आमतौर पर ‘स्पिरोमेट्री’ जांच की जाती है। यह अध्ययन देश का पहला और विश्व का सबसे बड़ा ऐसा ‘डाटाबेस’ है, जिसमें बुजुर्ग आबादी से जुड़ी जानकारी को लंबे समय तक दर्ज किया गया है।
जर्नल ‘पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस (पीएलओएस) वन’ में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला कि पुरुषों में यह बीमारी महिलाओं की तुलना में अधिक हो सकती है और इसकी संभावनाएं उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती जाती हैं।
अवरोधक फेफड़ों की बीमारी में ‘क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज’ (सीओपीडी) एक प्रकार है। यह बीमारी फेफड़ों को नुकसान पहुंचने, सूजन होने और वायु प्रवाह में रुकावट आने से होती है।
इस टीम में अमेरिका के दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ता शामिल थे। टीम ने प्रतिभागियों में जागरूकता का स्तर भी कम पाया। इसने बताया कि सर्वेक्षण में शामिल केवल 12 प्रतिशत पुरुषों और 11 प्रतिशत महिलाओं ने ही पूर्व निदान की बात कही।
शोधकर्ताओं ने कहा, ‘‘अवरोधक फेफड़ों की बीमारी 14.4 प्रतिशत थी। यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक था और उम्र के साथ बढ़ता गया।’’
उन्होंने बताया कि रोग के बारे में जागरूकता बहुत कम थी। उन्होंने बताया कि केवल 12 प्रतिशत पुरुषों और 11 प्रतिशत महिलाओं को ही फेफड़ों की बीमारी के बारे में पहले से पता था।
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