हिंगोट युद्ध में क्यों चलते हैं आग के गोले

Last Updated 20 Oct 2017 03:44:12 PM IST

मध्य प्रदेश के इंदौर के गौतमपुरा क्षेत्र में हिंगोट युद्ध में दो दलों के बीच आमने-सामने से जमकर आग के गोले बरसाये जाते हैं. इस नजारे को देखने के लिए हजारों लोग एकत्र होते हैं.


(फाइल फोटो)

परंपरा के मुताबिक, दीपावली के अगले रोज शाम के समय गौतमपुरा का मैदान रणक्षेत्र में बदल जाता है, और आकाश में आग के गोले नजर आने लगते हैं. इसमें हर साल बड़ी संख्या में लोग घायल होते हैं, मगर परंपरा अब भी जारी है. आज (शुक्रवार को) शाम सूर्यास्त होते ही हिंगोट युद्ध शुरू हो जाएगा. इस परंपरागत 'युद्ध' के मद्देनजर पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं. साथ ही चिकित्सा सेवाओं का भी प्रबंध किया गया है.

इस 'युद्ध' की शुरुआत कैसे और कब हुई, इसका कहीं लेखा-जोखा नहीं मिलता है, मगर यह माना जाता है कि यह ताकत और कौशल को प्रदर्शित करने के लिए होता है.

पुलिस के लिए इस युद्ध के दौरान सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है क्योंकि यहां हजारों की संख्या में लोग दर्शक के तौर पर पहुंचते हैं, तो दूसरी ओर 'युद्ध' में हिस्सा लेने वाले कई प्रतिभागी शराब के नशे में होते हैं.

इंदौर के पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) हरिनारायण चारी मिश्रा ने आईएएनएस को बताया कि गौतमपुरा में होने वाले हिंगोट युद्ध के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं. हेलमेट सहित अन्य सुरक्षा सामग्री के साथ 250 जवानों की तैनाती रहेगी, इसके अलावा एम्बुलेंस व स्वास्थ्य सेवा का भी इंतजाम रहेगा. यह परंपरा है, इसे रोका नहीं जा सकता. मगर, हादसा न हो, इसके लिए लोगों को समझाया गया है.

हिंगोट एक तरह का फल होता है. हिंगोरिया नामक पेड़ पर लगने वाला यह फल ऊपर से नारियल जैसा कठोर होता है, आकार नींबू जैसा और अंदर से खोखला होता है. यह छह से आठ इंच लंबा होता है. इस फल को यहां के लोग लगभग एक माह पहले तोड़कर रख लेते हैं. फल के ऊपरी हिस्से को साफ करने के बाद भीतर के हिस्से को बाहर निकाल लेते हैं. फल के सूख जाने के बाद उस पर बड़ा सा छेद करके बारूद भरते हैं. साथ ही छेद को मिट्टी से बंद कर देते हैं.

इस 'युद्ध' को वर्षों से देख रहे हीरालाल बताते हैं कि यह रोमांचकारी होता है. इसमें हिंगोट के एक ओर मिट्टी तो दूसरी ओर के छेद में बत्ती लगी होती है. उसके बाद इसे एक बांस की कमानी (पतली लकड़ी) से जोड़ा जाता है, ताकि निशाना सीधा दूसरे दल पर लगे.



इस 'युद्ध' में एक ओर तुर्रा तो दूसरी ओर कलंगी नाम का दल होता है. इन दलों के सदस्य पूरी तैयारी से मौके पर पहुंचते हैं. उनकी कोशिश होती है कि वे जीत हासिल करें. इसमें बड़ी संख्या में लोगों का घायल होना आमबात है. 'युद्ध' के समाप्त होने पर दोनों दलों के लोग गले मिलकर अपने घरों को लौट जाते हैं.

आईएएनएस


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment