हिमाचल के मलाणा गांव में है अद्भूत व्यवस्था

Last Updated 30 Apr 2014 05:59:00 AM IST

हिमाचल प्रदेश के जिले कुल्लू के गांव मलाणा में जो लोकतंत्रीय व्यवस्था है वह सबसे पुरानी कही जाती है.


हिमाचल के मलाणा गांव में है अद्भूत व्यवस्था

इस दुर्गम क्षेत्र में प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर ज्येष्टांग (अपर हाउस) और कनिष्टांग (लोअर हाउस) का चुनाव होता है. यहां की लोकतंत्रीय व्यवस्था की विशेषता यह है कि कार्यठीक न होने पर चयनित सदस्यों को र्निधारित अवधि से पहले ही हटाया जा सकता है. इस प्राचीन लोकतंत्र के चुनाव जून में होंगे.

समुद्र तल से लगभग 12 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थापित कुल्लू जिले के मलाणा गांव की संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था सबसे पुरानी और अच्छी मानी जाती है. यह व्यवस्था देश गुलाम होने से भी पहले की बताई जाती है. इस व्यवस्था के अंतर्गत लोकसभा और राज्यसभा की ही भांति ज्येष्टांग (अपर हाउस) और कनिष्टांग (लोअर हाउस) है. प्रत्येक तीन वर्ष के उपरांत इन दोनों हाउस के चुनाव होते हैं. धार्मिक मान्यताओं अनुसार यह चुनाव देवता जमदग्रि ऋषि के आदेशानुसार कराए जाते हैं.

इस अति प्राचीन संसदीय लोकतंत्र के ऊपरी सदन के सदस्यों की संख्या 11 है. इसमें से आठ का चुनाव होता है और तीन को मनोनीत किया जाता है. मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों में कर्मिष्ठ, पुजारी व गुरु होते हैं. यह सदस्य स्थाई होंते हैं. इनका चुनाव देवता स्वयं करते हैं. जिन आठ सदस्यों को चुना जाता है उनका चुनाव आम सहमति से होता है. जिन सदस्यों का चुनाव होता है उन्हें भी यह जानकारी नहीं रहती है कि उन्हें चुना जा रहा है.

लोअर हाउस के सदस्यों के चुनाव के लिए अलग व्यवस्था है. इसके लिए गांव में सदियों से रहने वाले खानदानों से दो-दो सदस्य लिए जाते हैं. गांव में मूलत: डरानी, पलचानी, नागवानी और धमयानी खानदानों के लोगों का आवास हैं. लोअर हाउस के लिए भी आठ सदस्योंका चयन होता है. यह चयन अलग-अलग खानदानों के सौ-सौ परिवारों में से किया जता है. एक खानदान के सौ परिवारों में से केवल दो सदस्यों को लोअर हाउस में लिया जाता है.

इस सदन में गांव के धारावेहड़ और सारावेहड़ सभी परिवारों के मुखिया सदस्य होते हैं. मुखिया न होने पर परिवार के वयस्क को सदस्य बनाया जाता है. मलाणा के बुजुर्ग बताते हैं कि मलाणा की ज्येष्टांग (अपर हाउस) के सदस्यों का चयन भी तीन वर्ष के लिए होता है. परन्तु काम ठीक ढंग से न करने पर इन्हें दो वर्ष बाद हटाया जा सकता है. मलाणा गांव में आज भी गांववासियों के अपने ही कानून चलते हैं. वह जमलू देवता को ही अपना शासक मानते हैं. ग्यारह सदस्यों पर अधारित परिषद के सदस्य स्वयं को जमलू देवता का प्रतिनिधि मानते हैं.

गांव में किसी भी तरह के विवाद या अन्य किसी महत्वपूर्ण मसले पर चर्चा के लिए परिषद की बैठक बुलाई जाती है. यह बैठक गांव के बीचो-बीच पत्थरों से बने चबूतरे पर होती है. गांववासी परिषद के फैसलों का सम्मान करते हैं और उन्हे मानते हैं. सभी प्रकार के निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं. इतिहासकार इस गांव की उत्पति के बारे में विभिन्न मतों में बंटे हुए हैं. बहुत से इतिहासकार मलाणावासियों को यूनानियों के वंशज मानते हैं और मलाणा को हिमालय का एथेंस कहते हैं.

इन इतिहासकारों का मानना है कि विविजेता बनने का सपना चूर-चूर होने के बाद सकिंदर वापस यूनान की ओर जाने लगा तो उसके कुछ सैनिक मलाणा में ही रुक गए. बहुत से इतिहासकार मलाणावासियों को इंडो-आर्यन मानते हैं. बताते हैं कि एक बार अकबर को किसी गंभीर रोग ने परेशान कर दिया. उस समय उसका इलाज मलाणा में हुआ था. इससे खुश होकर अकबर ने मलाणावासियों को पूर्णत: आजाद कर दिया. तब से यहां पर गांव के अपने ही कानून चल रहे हैं.

मलाणा गांव के बारे में कई तरह की किवदंतियां प्रसिद्ध हैं. इन किवदंतियां के सच-झूठ के बारे में तो विश्वास के साथ कुछ कहना कठिन है परन्तु एक बात तो सत्य है कि मलाणा में संसदीय लोकतांत्रित व्यवस्था सदियों से चल रही है. यह विश्व का सबसे प्राचीन संसदीय लोकतंत्र का उदाहरण है. विश्व के इस प्राचीन लोकतंत्र का चुनाव जून में होने जा रहा है.

नरेन्द्र शर्मा
एसएनबी


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