राजनीति के चाणक्य अमित शाह की असली चाणक्य के राज्य में परीक्षा
अमित शाह बिहार दौरे पर हैं। महागठबंधन की सरकार बनने के बाद अमित शाह बिहार का कई बार दौरा कर चुके हैं
![]() अमित शाह बिहार दौरे पर हैं |
अमित शाह बिहार दौरे पर हैं। महागठबंधन की सरकार बनने के बाद अमित शाह बिहार का कई बार दौरा कर चुके हैं। आखिर अमित शाह बिहार पर इतना ध्यान क्यों दे रहें हैं। दरअसल बिहार से पूरे देश को एक बहुत बड़ा संदेश जाने वाला है। बिहार पर फतह केंद्र में सरकार बनाने के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि ज्यादा सीटें जीतने पर भाजपा पूरे देश को संदेश देना चाहती है कि अब बिहार में जातिगत समीकरणों के आधार पर होने वाला वोटिंग पैटर्न बदल गया है, लेकिन महागठबंधन शायद बिहार में इतनी आसानी से भाजपा को राजनैतिक पिच तैयार करने नहीं देगी।
बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए को 39 सीटें मिलीं थीं। तब जेडीयू यानी नीतीश कुमार भाजपा के साथ थे। अब अलग हैं। 2019 में 39 सीटें नीतीश कुमार और मोदी के चेहरे पर मिलीं थीं। उस चुनाव में नीतीश कुमार के नाम पर ज्यादा सीटें मिलीं थी या नरेंद्र मोदी के नाम पर। इस पर चर्चा हो रही होगी। मंथन भी हो रहा होगा। भाजपा को इस बात का आभास है कि बिहार की लड़ाई आसान नहीं है। देश की सभी हिंदी भाषी या हिंदी समझने वाले राज्यों में भाजपा अपने दम पर सरकार बना चुकी है सिवाय वेस्ट बंगाल और बिहार के। हालांकि महाराष्ट्र में भी उसकी सरकार दूसरे दल के सहयोग से ही बनी थी लेकिन मुख्यमंत्री भाजपा से ही बने थे। बिहार में एनडीए की सरकार बनी लेकिन भाजपा की तरफ से कोई नेता मुख्यमंत्री नहीं बन पाया।
वेस्ट बंगाल में भाजपा ने बहुत कोशिश की थी,लेकिन वहां उसे कामयाबी नहीं मिली।बिहार और वेस्ट बंगाल ,दोनों राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने में काफी वक्त है। फिलहाल मामला 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर है। सभी पार्टियों का ध्यान इसी पर है। भाजपा को पता है कि बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की राजनैतिक जड़ें बहुत मजबूत हैं। इसलिए अमित शाह ने बिहार फतह की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी हैं। बिहार में भाजपा का कोई एक नेता ऐसा नहीं है जो अपने दम पर लोकसभा की शायद एक सीटें भी आसानी से जीत सके।
अमित शाह पिछले छह महीने में पांच बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। बिहार में 2024 की राजनैतिक पिच तैयार करने में भाजपा को मेहनत इसलिए ज्यादा करनी पड़ रही है ,क्योंकि अब नीतीश उनसे अलग हैं। अमित शाह राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं। साउथ के राज्य और वेस्ट बंगाल एवं बिहार को छोड़कर देश के लगभग हर राज्य में अमित शाह अपने राजनैतिक कौशल का परिचय दे चुके हैं। ऐसे में चाणक्य की नगरी या यूं कहिए वह राज्य जो चाणक्य की कर्म भूमि रही है,वहां राजनीति के चाणक्य की परीक्षा होने वाली है। अगर बिहार में अमित शाह कुछ ज्यादा अच्छा करने में सफल हो जाते हैं तो निश्चित तौर पर वह देश के किसी भी राज्य में कुछ भी करने में सफल हो जाएंगे।
बिहार की राजनैतिक पृष्ठभूमि कुछ अलग रही है। तमाम कोशिशों के बावजूद बिहार में आज भी जाति और धर्म के नाम पर खूब वोटिंग होती है। बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में हालांकि बहुत हद तक सुधार हो चुका है, वोटिंग पैटर्न बदल चुका है, लेकिन बिहार में आज भी अगर राजद को विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें मिलती हैं तो उसका ज्यादा श्रेय जातिगत समीकरणों को ही दिया जाता है। अमित शाह की सबसे बड़ी चुनौती उन 39 सीटों की है जो उन्होंने एनडीए गठबंधन में जीतीं थीं। अगर नीतीश को माइनस करने के बाद भाजपा तीस सीटें भी जीतने में सफल हो गई तो न सिर्फ भाजपा बल्कि अमित शाह को देश के लोग असली चाणक्य मान लेंगे।
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