चिंता : फुहारों के साथ डूबती यमुना

Last Updated 03 Jul 2025 01:03:06 PM IST

बीते डेढ़ महीने में राजधानी दिल्ली पर कुल चार बार ठीकठाक बादल बरसे और बमुश्किल एक घंटे की बरसात में ही दिल्ली ठिठक गई। तीन दशकों से लाख दावों के बावजूद हर साल जलभराव वाले स्थानों की संख्या बढ़ रही है।


2023 में जहां जलभराव के 308 बिंदु चिन्हित किए गए थे, वहीं 2025 में इनकी संख्या बढ़ कर 410 हो गई है। 

अब तो डूबने का दायरा वीआईपी कहलाने वाली लुटियन दिल्ली तक आ गया है। पानी भरते ही दो बातें  सामने आती हैं। एक तो इस महीने या फिर इतने कम समय में इतना अधिक पानी कितने साल बाद बरसा। दूसरा, नायलॉन की सफाई और सीवर तंत्र का  पुराना  होना।  समझना होगा कि दिल्ली बसी ही इसलिए थी कि यहां से यमुना बह रही थी। दिल्ली का जलभराव हो या फिर प्यास, उसका एकमात्र इलाज यमुना ही है। 

दिल्ली में जलभराव का कारण यमुना का गाद और कचरे के कारण इतना उथला हो जाना है कि महज एक लाख क्यूसेक पानी आ जाए तो इसमें बाढ़ आ जाती है। नदी की जल ग्रहण क्षमता को कम करने में बड़ी मात्रा में जमा गाद (सिल्ट), रेत, सीवरेज, पूजा-पाठ सामग्री, मलबा और तमाम तरह के कचरे का योगदान है। नदी की गहराई कम हुई तो इसमें पानी भी कम आता है। आजादी के 77 साल में कभी भी नदी की गाद साफ करने का कोई प्रयास हुआ ही नहीं, जबकि नदी में कई निर्माण परियोजनाओं के मलबे को डालने से रोकने में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के आदेश नाकाम रहे हैं।

1994 से लेकर अब तक यमुना एक्शन प्लान के तीन चरण आ चुके हैं, हजारों करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं पर यमुना में गिरने वाले दिल्ली के 21 नालों की गाद भी अभी तक नहीं रोकी जा सकी। जब महानगर के बड़े नाले गाद से बजबजाते हैं, तो जलभराव की चोट दोधारी होती है। जब नाले का पानी नदी की तरफ लपकता है, और  उथली नदी में पहले से ही नाले के मुंह तक पानी भरा होता है। ऐसे में नदी के प्रवाह से उपजे प्रतिगामी बल से नाले फिर पलट कर सड़कों को दरिया बना देते हैं। कभी यमुना का बहाव और हाथी डुब्बा गहराई आज के मयूर विहार, गांधी नगर, ओखला, अक्षरधाम तक हुआ करता था। 

एक तरफ ढेर सारी वैध-अवैध कालोनियों और सरकारी भवनों के कारण नदी की चौड़ाई कम हुई तो दूसरी तरफ गहराई में गाद भर दी। इस तरह जीवनदायी बरसात के जल को समेटने वाली जल धार को कूड़ा ढोने की धार बना दिया गया। वहीं शहर के छह सौ से अधिक तालाब-झीलों तक बरसात का पानी आने के रास्ते रोक दिए गए। दुर्भाग्य है कि कोई भी सरकार दिल्ली में आबादी को बढ़ने से रोकने पर काम कर नहीं रही। इसका खमियाजा भी यमुना को उठाना पड़ रहा है, हालांकि इसकी मार भी उसी आबादी को पड़ रही है। सभी जानते हैं कि दिल्ली जैसे विशाल आबादी वाले इलाके में हर घर पानी और मुफ्त पानी बड़ा चुनावी मुद्दा है, और जब नदी-नहर पानी की कमी पूरी कर नहीं पाते तो जमीन में छेद कर पानी उलिछा जाता है, यह जाने बगैर कि इस तरह भूजल स्तर से बेपरवाही का असर यमुना के जल स्तर पर ही पड़ रहा है।  

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एक शोध के मुताबिक, यमुना के बाढ़ क्षेत्र में 600 से अधिक आर्दभूमि और जल निकाय थे, लेकिन उनमें से 60% से अधिक अब सूखे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यमुना बाढ़ क्षेत्र में यमुना से जुड़ी कई जल-तिजोरियों का संपर्क तटबंधों के कारण नदी से टूट गया।’ समझना होगा कि अरावली से चल कर  नजफगढ़ झील में मिलने वाली साहबी नदी और इस झील को यमुना से जोड़ने वाली नैसर्गिक नहर का नाला बनना हो या फिर सराय कालेखां के पास बारापुला या फिर साकेत में खिड़की गांव का सतपुला या फिर लोधी गार्डन की नहरें, असल में ये सभी यमुना में जब कभी क्षमता से अधिक पानी आ जाता था तो उसे जोहड़-तालाब में सहेजने का जरिया थीं। एनजीटी में इन सभी जल मागरे को बचाने के मुकदमे चल रहे हैं लेकिन इन पर अतिक्रमण अनवरत जारी है। सो, न अब बरसात का पानी तालाब में जाता है, और न ही बरसात के दिनों में सड़कों पर जलजमाव रुक पाता है।

वैसे, एनजीटी 2015 में ही दिल्ली के यमुना तटों पर निर्माण पर पाबंदी लगा चुका है लेकिन इससे बेपरवाह  सरकारें मान नहीं रहीं। अभी एक साल के भीतर ही लाख आपत्तियों के बावजूद सराय कालेखां के पास ‘बांस घर’ के नाम से  केफेटेरिया और अन्य निर्माण हो गए। जान लें कि यदि दिल्ली को जलभराव से नहीं जूझना है तो यमुना अविरल बहे, उसकी गहराई और पाट बचे रहें, यही अनिवार्य है। यह बात कोई जटिल रॉकेट साइंस नहीं है। लेकिन बड़े ठेके, बड़े दावे, नदी से निकली जमीन पर और अधिक कब्जे का लोभ यमुना को जीवित रहने नहीं दे रहा। तैयार रहिए, भले ही अदालत डांटती रहे-अपनी संपदा  यमुना को चोट पहुंचाने के चलते सावन-भादों में तो हर फुहार के साथ दिल्ली डूबेगी ही!

पंकज चतुर्वेदी


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