बिहार : पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय का 'सियासी सपना' फिर टूटा, अनिल देशमुख ने कसा तंज
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल (युनाइटेड) के अपने कोटे की सभी 115 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा के बाद बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गुप्तेश्वर पांडेय का चुनाव लड़ने का सपना एक बार फिर टूट गया है।
![]() पूर्व DGP गुप्तेश्वर पांडेय(फाइल फोटो) |
गुप्तेश्वर पांडेय को टिकट नहीं मिलने पर महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने मीडिया से बात करते हुए कहा, 'गुप्तेश्वर पांडे (बिहार के पूर्व डीजीपी) को चुनावी टिकट देना पार्टी का विषय है। हमने पूछा था कि क्या भाजपा के नेता उनके लिए प्रचार करेंगे। इस सवाल के डर के कारण शायद उन्हें टिकट नहीं दिया गया।
ये पार्टी का निजी मामला है, हमने सवाल किया था कि क्या भाजपा के नेता गुप्तेश्वर पांडेय के प्रचार में जाएंगे? शायद इस सवाल के डर से उनको टिकट नहीं दिया होगा: गुप्तेश्वर पांडेय को टिकट नहीं मिलने पर महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख pic.twitter.com/KHVeeWbmVV
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 8, 2020
बता दें कि सुशांत सिंह राजपूत केस को लेकर गुप्तेश्वर पांडेय काफी मुखर रहे हैं और उन्होंने मुंबई पुलिस, महाराष्ट्र सरकार पर केस की जांच को लेकर लापरवाही बरतने का आरोप लगाते रहे थे। जबकि महाराष्ट्र सरकार, शिवसेना की ओर से इसे सिर्फ राजनीतिक कारण बताया गया था।
इस बीच पांडेय अपने शुभचिंतकों के लिए सोशल मीडिया के जरिए एक संदेश देकर निराश नहीं होने की अपील की है।
बिहार के डीजीपी रहे पांडेय ने कुछ दिनों पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में जदयू की सदस्यता ग्रहण की थी, तब यह कयास लगाए जा रहे थे कि पांडेय इस चुनाव में बक्सर से जदयू के प्रत्याशी हो सकते हैं। लेकिन बक्सर सीट भाजपा के कोटे में चली गई।
इसके बाद यह भी बातें सियासी हवा में तैरने लगी कि पांडेय को भाजपा टिकट देकर विधानसभा पहुंचा देगी, लेकिन भाजपा ने यहां परशुराम चतुर्वेदी को टिकट थमाकर उनके सियासी सपनों को तोड़ दिया।
जदयू ने अपनी सभी 115 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी, जिसमें गुप्तेश्वर पांडेय का नाम नहीं है।
इसके बाद पूर्व डीजीपी पांडेय का दर्द छलक गया। पांडेय ने सोशल मीडिया के आधिकारिक एकाउंट से पोस्ट किया, "अपने अनेक शुभचिंतकों के फोन से परेशान हूं, मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूं। मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूंगा लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा। हताश निराश होने की कोई बात नहीं है। धीरज रखें, मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है। मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूंगा। कृपया धीरज रखें और मुझे फोन नहीं करें। बिहार की जनता को मेरा जीवन समर्पित है।"
वैसे, यह कोई पहली बार नहीं है कि पांडेय का विधानसभा या लोकसभा पहुंचने का सपना टूटा है। इससे पहले करीब 11 साल पहले 2009 में भी पांडेय ने वीआरएस लिया था, तब चर्चा थी कि वे भाजपा के टिकट लेकर बक्सर लोकसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरेंगें, लेकिन उस समय भी उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया।
वैसे, पांडेय की राजनीतिक पारी में भले ही अब तक गोटी सही सेट नहीं हो सकी है, लेकिन अभी भी कई विकल्प खुले हुए हैं। कहा जा रहा है कि बिहार में राज्यपाल कोटे के 12 विधान परिषद सदस्यों का मनोनयन होना है। चुनाव के बाद राजग की सत्ता में वापसी होती है तो जदयू के प्रमुख नीतीश कुमार के हाथ में होगा कि वो किसे विधान परिषद भेजते हैं। ऐसे में पांडेय अब इस कोटे के जरिए सदन पहुंचने के लिए राजनीतिक जुगाड़ कर अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।
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